
इसे आम भाषा में ‘ईव टीजिंग’ कहते हैं मगर यह गंभीर यौन उत्पीडन में बदल जाता है. एक महिला होने के नाते आपने अपनी जिंदगी में इसे कम से कम एक बार तो महसूस किया होगा. आप ऐसा महसूस करने वाली अकेली नहीं हैं.
क्या आप अभी यौनिक उत्पीडन का सामना कर रही हैं…
क्या आप कन्फ्यूजड, परेशान, गुस्सा और लाचारी महसूस कर रही हैं….
क्या आप सोच रही हैं कि – यह सचमुच गंभीर मसला है या मैं ज्यादा ही सीरियस हो रही हूँ?
आप अकेली नहीं हैं. आप जैसी यहाँ सैकड़ों हैं जो इससे बचने का रास्ता खोज रही हैं.
इसके बारे में जानकारी की तलाश करके आप इससे निपटने और खुद को सशक्त बनाने का पहला कदम उठाती हैं.
यौनिक उत्पीडन को अपनी जिंदगी में बाधा ना बनने दें. आपको पूरा अधिकार है कि आप सम्मान के साथ अपना काम कर सकें और अपनी जिंदगी जी सकें.
आपको पूरा हक है कि आप आज़ादी से घूमफिर सकें. यह आपका बुनियादी मानवीय अधिकार है.
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
किसी अपराध को समझाने के लिये ‘ईव टीजिंग’ बहुत ही हल्का शब्द है इसलिए अब इसे यौनिक उत्पीडन कहा जाता है. संछेप में यदि समझें तो यौनिक उत्पीडन वह हरकत कहलाता है जो किसी के लिए अनचाहा, जबरदस्ती का और नापसंद हो. यौनिक उत्पीडन क्या है? “यौनिक उत्पीडन वो जबरदस्ती का यौनिक मेलजोल या संपर्क है जो आप नहीं चाहतीं. यह एक ऐसा माहौल है जहाँ औरतों को हमेशा यौनिक और अश्लील बातों का निशाना बनाया जाता है और उन्हें ये बर्दाश्त करना पड़ता है, जैसे कि उसके पास और कोई काम ही नहीं है....” [केथरिन ए. मक्किन्नो, प्रोफ़ेसर ऑफ लॉ, टाइम्स ऑफ इन्डिया, 30-1-2009] 1997 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, किसी भी तरीके का यौनिक व्यवहार जो अनचाहा और बिना स्वागत के हो जैसे शारीरिक संपर्क, यौनिक मांग, यौनिक छींटाकशी, अश्लील चित्र दिखाना, और अन्य कोई मौखिक या शारीरिक हरकत, यौनिक उत्पीडन कहलाता है. यह सूक्ष्म, हल्का, गुप्त, विशिष्ट, दोहराए जाने वाला, लंबा चलने वाला और एक बार होने वाली घटना हो सकता है. बाद में अपरेल एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल बनाम चोपड़ा केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जोर देते हुए कहा कि ‘कोई भी व्यवहार और बर्ताव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से औरत का शील भंग करता है उसे यौनिक उत्पीडन की परिभाषा में शामिल करना चाहिए.’ इससे यही मतलब निकलता है कि केवल शारीरिक संपर्क ही यौनिक उत्पीडन नहीं है. इसके आलावा, यौनिक उत्पीडन उत्पीडक की मंशा/इच्छा से परिभाषित नहीं होता. आपको तय करना है कि यह यौनिक उत्पीडन है या नहीं. और यदि आपको यह अप्रिय, आपत्तिजनक औए असहज लगता है तो यह यौनिक उत्पीडन ही है. कौन इसका शिकार हो सकता है? अध्ययन बताते हैं कि यौनिक उत्पीडन का शिकार कोई भी, कहीं भी, कभी भी और किसी उम्र का भी हो सकता है. हालांकि यह ज्यादातर महिलाओं को होता है, लेकिन एक पुरुष भी इसका शिकार हो सकता है. समलैंगिक संबंधों में, एक पुरुष दूसरे के और एक महिला दूसरी महिला के खिलाफ यौन उत्पीडन कर सकती है. उत्पीडक कौन है? यह कोई भी हो सकता है. उत्पीडक आपका पहचान वाला या अजनबी हो सकता है. यौनिक उत्पीडन सेक्स के बारे में नहीं बल्कि सत्ता और ताकत का खेल है. एक मर्द उत्पीडन करता है क्योंकि उसे लगता है कि वह यह कर सकता है. यह कहाँ हो सकता है? यह सार्वजनिक जगहों में, घर के निजी छेत्र में, कार्यस्थल और कॉलेज/केम्पस में होता है. हम एक करके इसके बारे में बात करेंगे. यौनिक उत्पीडन होने पर किसे दोष दिया जाता है? लोग हो सकता है कि कहें कि आपके कपड़ों, समय या आपके किसी बर्ताव का इससे लेना देना है. इसके लिए आपको नहीं बल्कि यौनिक उत्पीडन करने वाले को दोषी ठहराना चाहिए. क्या यह इतना गंभीर है कि इसे यौनिक उत्पीडन कहना चाहिए? हर इंसान का अपना एक सहजता का दायरा होता है जो हम खुद अपने लिए तैयार करते हैं. सहजता का यह क्षेत्र एक चक्र जैसा होता है जो हम दहलीज़ की तरह अपने चारों तरफ बना लेते हैं. यह दहलीज़ तय करती है कि कौन सा व्यवहार स्वीकार है और कौन सा नहीं. यह अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग समय पर फर्क हो सकता है. जैसे कि, एक महिला अपने पुरुष मित्र के गले लगाने से सहज हो सकती है, मगर हो सकता है कि उसे यदि उसका सहकर्मी गले लगाये तो उसे असहजता हो. इस सहजता के दायरे या दहलीज़ का उलंघन केवल स्पर्श से ही नहीं होता. इसका उलंघन गैर शारीरिक हरकत से भी हो सकता है जैसे घूरने, कड़वी बात कहने, निजी सवाल पूछने आदि से. यौनिक उत्पीडन ऐसा ही गंभीर व्यवहार है जिससे किसी व्यक्ति के निजी सहजता दायरे और दहलीज़ का उलंघन/हनन होता है. यौनिक उत्पीडन फ्लर्ट (इश्कबाज़ी/मजाक) से फर्क कैसे है? यौन उत्पीडन को महज़ नुकसान ना पहुँचाने वाला या फ्लर्ट कह कर छुटकारा नहीं पाया जा सकता. यौनिक उत्पीडन फ्लर्ट करने के बराबर नहीं है. फ्लर्ट/मजाक में दो लोग बराबरी से शामिल होते हैं, जहाँ दोनों ही एकदूसरे के प्रति सकारात्मक महसूस करते हैं. यह पूरी तरह से मनचाहा और स्वागत भरा होता है. आप जब फ्लर्ट करते हैं तो सशक्त महसूस करते हैं. यह आपको खुशी देता है. यौनिक उत्पीडन पूरी तरह से एकतरफा होता है और इसमें यौन भाव निहित होता है, जहाँ एक इंसान दूसरे से डरता है. यह ऐसा व्यवहार होता है जो न ही मनचाहा होता है और ना ही पसंद किया जाता है. यह आपको असहज बनाता है और आपमें शर्म और झिझक का भाव पैदा करता है. क्या ऑफिस में हुए अफेयर (इश्क) को यौनिक हिंसा का केस कहेंगे? ऑफिस का सम्बन्ध यौनिक उत्पीडन का केस नहीं है जबतक कि यह सम्बन्ध तय किये गए नियमों और तरीकों के भीतर हो और आपसी समझ वाला हो. लेकिन, यह उस स्थिति में यौनिक उत्पीडन बन जाता है जब महिला तरक्की/बेहतर पद/ट्रान्सफर आदि के लिए किसी दबाव में आकार अपनी सहमति देती है. यह इसलिए यौनिक उत्पीडन का केस बनता है क्योंकि इसमें महिला के केरियर पर बुरा असर पड़ने का डर शामिल होता है. क्या मेरे कपड़ों का इससे कुछ लेना देना है? नहीं. यौनिक उत्पीडन का आपके कपड़ों से कुछ लेना देना नहीं है. पश्चिमी/कसा हुआ/छोटे कपड़े यौन उत्पीडन के कारण नहीं हैं. ये सारे मर्दों (और औरतों) के महिला के ऊपर सारा दोष मढ़ने के बहाने हैं. मर्द उन महिलाओं का भी यौन उत्पीडन करते हैं जो ‘ढंग’ के कपड़े पहनती हैं. वे सभी औरतों को चाहे उन्होंने जैसे कपड़े पहने हों या किसी भी उम्र की हों, यौन उत्पीडन करते हैं. यौन पूर्ण वातावरण क्या है? क्या इसमें यौनिक उत्पीडन शामिल है? यौन पूर्ण वातावरण ज्यादातर कार्यस्थल होता है जहाँ सेक्स भरे चुटकुले, अश्लील फोटो को इन्टरनेट से डाउनलोड करना, यौन बातों और चित्रों का आपस में लेन देन चलता है. हो सकता है कि यह खासतौर से किसी के तरफ ना हो. इस तरह का माहौल अपने आप में यौन उत्पीडन भरा नहीं होता. लेकिन यदि एक भी सहकर्मी इससे असहज हो या उसे आपत्ति हो तो यह यौन उत्पीडन हो सकता है. क्या यौन हिंसा यौन उत्पीडन से फर्क है? यौन हिंसा और यौन उत्पीडन आपस में सम्बंधित होते हैं मगर ये फर्क भी हो सकते हैं. यौन हिंसा का मतलब है किसी महिला या पुरुष पर शारीरिक बल इस्तेमाल करते हुए, हथियार दिखाकर या ऐसे ही जबरदस्ती यौनिक सम्बन्ध बनाना. बलात्कार, यौन हिंसा का सबसे गंभीर रूप है, जबकि किसी के गुप्तांगों को छूना बलात्कार से ‘कम’ डिग्री वाली हिंसा है. यौन उत्पीडन व्यापक मायने में जेंडर आधारित हिंसा का रूप है, जो बोलकर या अनबोले किया जाता है जैसे यौन टिपण्णी करना, औरत के शारीर को गन्दी नज़रों से देखना, अनचाहे यौन संपर्क की मांग करना. यौन हिंसा/ बलात्कार और यौन उत्पीडन दोनों ही अनचाहे हैं और उसमें जबरदस्ती शामिल है. दोनों ही कानूनन अपराध है.कार्यस्थल
“मैं एक एअर होस्टेस हूँ. मुझे ये देखकर नफरत होती है कि मेरे काम के वक्त सैकड़ों नज़रें मेरे जिस्म को घूरती हैं.”सोनाली [डेक्कन हेराल्ड 1-1-2008]
आप घर से बाहर काम के लिए निकलती हैं. आप चाहती हैं कि आपकी पहचान आपकी बुद्धिमान और जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में हो. मगर सिर्फ एक हरकत – आपको छूने, गन्दी नज़र से घूरने, सेक्स भरे मजाक करने, अश्लील अर्थ वाले टिपण्णी, यौन संपर्क की मांग से आपको एक सिर्फ ‘शारीर’ बना कर रख देता है. कार्यस्थल पर ये सारी हरकतें यौन उत्पीडन हैं.
यह क्या है
जब आपका मालिक या सहकर्मी आपसे ‘डेट’ मांगता है, आपको छू कर निकल जाता है, बिना वजह बार बार आपको अपने केबिन में बुलाता है, अश्लील चित्र का प्रदर्शन करता है, आपत्तिजनक ईमेल भेजता है, यौनिक संपर्क की मांग करता है तो यह सीधे सीधे यौन उत्पीडन है. यह पूरी तरह से छिपा हुआ भी हो सकता है.
यह यौन उत्पीड़न यह कॉल करने के लिए काफी गंभीर है? आप नाराज हैं और कहा कि कार्रवाई से उल्लंघन लगता है कि अगर ऐसा नहीं है
जैसा कि यौन उत्पीडन की परिभाषा धुंधली हो सकती है, यहाँ हमेशा सवाल रहता है कि :
मैं कैसे समझूँ कि यह सचमुच यौन उत्पीडन है और हल्का फुल्का मजाक नहीं? नीचे दिए गये वाक्यों को देखकर ‘हाँ’ या ‘ना’ में जवाब दें.
- क्या उस व्यहवार का स्वभाव यौनिक था?
- क्या उस व्यवहार ने आपको असहज और भयभीत महसूस करवाया?
- क्या वह गन्दा स्पर्श था?
- क्या कहे गए शब्द में दोहरा मतलब था?
- क्या उस व्यवहार से आपको डर लगा या चिंता हुई?
- आपको महिला होने का एहसास करवाया गया?
- क्या आपको व्यवहार बहुत आपत्तिजनक लगा?
यदि आपने एक से ज्यादा सवालों के जवाब ‘हाँ’ में दिए हैं तो आपको समझना चाहिये कि यह यौन उत्पीडन है:
याद रखें कि:
यौन उत्पीडन फ्लर्ट नहीं है:
- यौन उत्पीडन अफेयर से फर्क है. एक अफेयर यौन उत्पीडन में बदल सकता है जब उसमें महिला के साथ ज़बरदस्ती शामिल हो जाये.
- जब काम की जगह पर दोस्ती की सीमारेखा पार होती है तो यौन उत्पीडन का मामला हो सकता है. यह आप ही हैं जो ऑफिस के संबंधों की दह्लीजें तय करते हैं.
- ऑफिस सम्बन्ध आपसी होते हैं. हालांकि यौन उत्पीडन ज़बरदस्ती का होता है. यह तुरंत यौन उत्पीडन में तब्दील हो जाता है जब किसी आदमी का बर्ताव अनचाहा हो जाता है.
- यहाँ यौन उत्पीडन के कुछ उदाहरण दिए गए हैं जिससे आपको इसे पहचानने में मदद मिलेगी.
- यौन सम्बन्ध की मांग करना
- अश्लील नज़रों से घूरना और शारीर के हिस्सों को देखना
- व्यक्तिगत और निजी सवाल पूछना
- आपके शारीर के हिस्सों, कपड़ों और दिखावे पर टिपण्णी करना
- डार्लिंग, हनी आदि जैसे शब्दों से आपको पुकारना, जो आपको असहज बनाते हैं
- भद्दे और अश्लील चुटकुले कहना या ऐसे चुटकुले जो महिला को हीन बनाये, अश्लील गाने गाना, अश्लील ईमेल भेजना, कार्यस्थल पर आपको अश्लील बातें पढ़कर सुनाना
- आपके व्यक्तिगत स्पेस को लांघना
- आपके शारीर को छूते हुए गुज़र जाना
- अचानक छूना, पीछे से पकड़ना या छाती पर हाथ लगाना, चिकोटी काटना, रगड़ना, बेमतलब आपको गले लगाना.
- ऑफिस के काम बाद बिना वजह बुलाना
- बेमतलब के सन्देश भेजना
- आपके माना कर देने के बावजूद आपसे ‘डेट’ पर जाने के लिए जिद करना
- अश्लील हावभाव बनाना जैसे अपने गुप्तांगों को खुजलाना और आपके सामने अपने शर्ट या बेल्ट खोलना
- इच्छुक, दोहरे अर्थ बयान देने के लिए दूसरों के सामने आपको नीचा दिखाने के लिए
- दूसरों के सामने आपको बेमतलब छूना
- हाथ मिलते समय ज़रूरत से ज्यादा देर तक आपके हाथ को पकड़े रखना
- आपको किसी खास तरह के कपड़े पहनने के लिए कहना
- ऑफिस केबिन में बिना किसी वजह के आपको बार बार बुलाना
- ऑफिस में अकेला पाकर घेर लेना
- आपके सामने पुरुष सहकर्मियों के साथ यौन संबंधी चुटकुले सुनाना
- आपको शराब और सिगरेट पीने का लिए ज़बरदस्ती करना
- अपने साथ बाहर जाने के लिए आपके साथ ज़बरदस्ती करना
- ऑफिस के बाहर आपका पीछा करना
- उसके साथ सोने या अफेयर करने के लिए आपके साथ ज़बरदस्ती करना
- बाहर बिजिनेस दौरे पर आपको यौन सम्बन्ध बनाने के लिए कहना
यौन उत्पीडन के प्रकार
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यौन उत्पीडन दो प्रकार के होते हैं :
कुइड प्रो को एक प्रकार है जिसके तहत यौन सम्बन्ध बनाने के बदले में नौकरी में अच्छे पद, नौकरी की सुरक्षा, तरक्की, बेहतर वेतन देने की शर्त रखना.
उदाहरण के लिए जैसे आपका बॉस या सीनियर सहकर्मी कहे कि “मैं तुम्हारे लिए यह (...............)कर सकता हूँ मगर इसके बदले में मुझे क्या मिलेगा?”
इस तरह के यौन उत्पीडन के केसों में अक्सर उत्पीडक के पास बॉस होने या मालिक होने की वजह से आपसे ज्यादा अधिकार या सत्ता होती है. इस तरह के यौन उत्पीडन अक्सर सामने खुले तौर पर होते हैं.
शत्रुता पूर्ण काम का माहौलमें वो सभी व्यवहार शामिल है जो भेदभाव पूर्ण है. जैसे महिलाओं के लिए टोइलेट्स या बाथरूम ना होना, चूँकि वे महिला है इसलिए उसके काम में कमी निकालते रहना, उसकी यौनिक पहचान के नाते उसके साथ असमानता करना, उसकी तरक्की ना करना और यौन उत्पीडन के मामलों का मजाक बनाना.
“यदि मुझे कोई समस्या होती तो प्रिन्सीपल पहले मुझे उसे खुश करने को कहता तब मेरी समस्या देखने कि बात करता. वह जब भी मुझे देखता अश्लील हावभाव के साथ देखता. एक स्कूल पिकनिक पर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि, ‘ मुझे हर समय घर का बना खाना खाना अच्छा नहीं लगता, कभी कभी मुझे बाहर खाना भी अच्छा लगता है.” – एक सीनियर स्कूल टीचर [डीएनए, 2/7/2007]
संभावित कदम
‘ एक पुरुष सहकर्मी अक्सर अश्लील कहानियां सुनाता था. मैंने उसे रोकने की कोशिश की मगर वो नहीं माना. मैं अपने बॉस के पास गई कि वो उससे बात करे मगर मेरी ये कोशिश भी बेकार गई.” – कॉल सेंटर की एक महिला कर्मचारी
हजारों महिलाएं चुपचाप कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन सहती रहती हैं, क्योंकि उन्हें नौकरी चली जाने, मजाक बनने, शर्म से बचने और आगे और यौन उत्पीडन हो इसका डर रहता है. जब आपके साथ यौन उत्पीडन हुआ हो या हो रहा हो तो आप क्या कर सकती हैं? आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आप इस उत्पीडन को रोकें.
अनौपचारिक कदम
अनौपचारिक तरीके औपचारिक की तुलना में ना केवल जल्दी और सरल उपाय हैं बल्कि ज्यादातर केसों में मददकारी भी हैं. यहाँ आपका मकसद है कि उत्पीडन को तुरंत रोका जाए. उत्पीडक को अक्सर ये उम्मीद नहीं होती कि आप प्रतिरोध करेंगी. आपका मकसद होना चाहिए कि उसकी हरकत को सामने लाया जाए.
उत्पीडक से कैसे सामना करें
- यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जैसे ही यौन उत्पीडन हो उसे रोकने की कोशिश करें या विरोध करें. अगर ज़रूरत हो तो अभ्यास करें, “ मुझे बहुत अपमानजनक लगा जिस तरह से (------) आपने उस दिन (------) इसलिए मैं कहती हूँ इसे तुरंत बंद करो.”
- उसकी हरकतों को ऑफिस में सबके सामने उजागर करें. दूसरे लोगों को उसके बारे में बताएं. क्या पता हो सकता है कि अन्य महिलाएं भी हों जिनके साथ ऐसी घटना हुई हो.
- उत्पीडक को बताएं कि आपको यौन उत्पीडन से भयमुक्त माहौल में काम करने का अधिकार है. आपके बोलने का लहजा गंभीर और शांतिपूर्वक होना चाहिए
- उत्पीडक से सामना करते वक्त आपने हावभाव पर नियंत्रण रखें. मजबूत बनी रहें, सीधे उसकी आँखों से नज़रें मिलाकर बात करें, घबराएँ नहीं. बात करते समय सीधे खड़ी रहें और अपनी आवाज़ को स्थिर रखें. रोयें नहीं, उसके गलत बर्ताव के विषय में ही बात करें.
- चिठ्ठी लिखना उत्पीडक के साथ सामना करने का एक प्रभावकारी तरीका है. खासतौर से जब कहने पर भी यौन उत्पीडन ना रुके. इस चिठ्ठी की एक कॉपी अपने पास रखें और एक मानव संसाधन या जेनरल मैनेजर (यदि आप उन्हें इस मामले में शामिल करने का निर्णय लेती हैं) को दें. घटना को डीटेल में लिखें, घटना का दिन, समय और उससे आपके ऊपर कैसा असर हुआ. चिठ्ठी को रजिस्टर पोस्ट से भेजें और उसकी पर्ची सावधानी से अपने पास रखें.
- भले ही पहले आपने उत्पीडक के यौनिक संपर्क को स्वीकार कर लिया हो (डर या दबाव की स्थिति में), फिर भी आपको पूरा अधिकार है कि किसी भी समय आप उसकी मांग का विरोध कर सकती हैं या रोक सकती हैं. आपको इसका भी पूरा अधिकार है कि आप इसकी शिकायत दर्ज करें.
अर्ध औपचारिक कदम
अर्ध औपचारिक तरीकों का मतलब है कि आप इस मुद्दे को अनौपचारिक रूप से मगर मनेजमेंट या उच्च अधिकारी के पास ले जा रही हैं. उदाहरण के लिए, मनेजमेंट या सुपरवाइजर की तरफ से एक ऑफिसियाल पत्र ही मामले को सुलझा सकता है. कई संस्थानें इसी तरह उत्पीडन के केसों को अंदर ही अंदर सुलझा लेना चाहते हैं ताकि उनके बारे में नकारात्मक सोच का प्रचार ना हो.
- पता करें कि आपके ऑफिस में शिकायत समिति है (जैसा कि विशाखा गाइडलाइंस के अंतर्गत सुझाव दिया गया है) या यौन उत्पीडन के खिलाफ़ आपकी कंपनी में पोलिसी है. इस तरह के मामलों में मानव संसाधन विभाग आपकी मदद कर सकता है.
- यदि आपके टोकने के बाद भी उत्पीडन लगातार हो ही रहा है तो मानव संसाधन से सलाह लें. अक्सर मानव संसाधन या सुपरवाइजर से भेजी गई चिठ्ठी उत्पीडन रोकने में सहायक होती है.
- अपने सहकर्मियों के बीच विशाखा गाइडलाइंस और कंपनी में मौजूदा पोलिसी के बारे में जागरूकता लायें. कंपनी में यदि कोई और महिला भी यौन उत्पीडन से परेशान है तो जोइंट शिकायत दर्ज करें.
- यौन उत्पीडन के खिलाफ़ पोलिसी और सही व्यवहार के नियम को उत्पीडक के पास भेजें.
- मानव संसाधन और सुपरवाइजर से उत्पीडन में मामले में चर्चा करते समय इसे गुप्त बनाये रखने का आपका अधिकार है.
- औपचारिक शिकायत दर्ज करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है उत्पीडन की घटना को डाक्यूमेंट करना. इसका मतलब है आपको घटना के बारे में डीटेल नोट तैयार करना - कोई धमकी दी गई हो, तारीख, किस जगह घटना घटी, आपको कैसा महसूस हुआ, आपने कैसे जवाब दिया, जब आपने पलट कर सामना किया तो उत्पीडक का बर्ताव कैसा था, क्या शब्द इस्तेमाल हुए थे और यदि घटना का कोई गवाह है.
- इस नोट को आप ऑफिस में नहीं बल्कि घर में रखें.
- यदि आपके काम में कोई बदलाव आता है जैसे कि आपको वो प्रोजेक्ट करने के लिए देना जिसे करने का रोल आपका नहीं है.
- यदि यौन उत्पीडन में शारीरिक हिंसा या बलात्कार भी शामिल है तो अपनी मेडिकल जांच करवाएं. इस मेडिकल रिपोर्ट को सावधानी से रखें क्योंकि क़ानूनी कार्यवाई करने के लिए यह बहुत ही ज़रुरी डोक्युमेंट है.
- अपने काम के रिकॉर्ड की कॉपी, कंपनी के काम के बारे में, यौन उत्पीडन के खिलाफ़ पोलिसी, आपके काम का मूल्यांकन, ऑफिसियाल डोक्युमेंट जिसमें आपके काम की तारीफ हो या अन्य कोई भी दस्तावेज जो आपके केस के लिए उपयोगी हो उसे रखें. ये सारे दस्तावेज आप अपने घर में रखें.
- यह महत्वपूर्ण है कि आप ये सारे डोक्युमेन्ट्स किसी ज़िम्मेदार गवाह की जानकारी से इकट्ठा करें. इन डोक्युमेन्ट्स का स्त्रोत क्या है इसकी जानकारी होना बहुत ज़रुरी है.
- यौन उत्पीडन की घटना का कोई गवाह तैयार करें. किसी सहकर्मी को तैयार करें जो अपनी आँखों से घटना को देख सकें या सुन सके. आपके केस को मजबूत बनाने के लिए यह बहुत ही ज़रुरी पक्ष है.
औपचारिक या क़ानूनी कदम
औपचारिक तरीके का मतलब है लिखित में शिकायत. आपके कार्यस्थल के स्वभाव पर निर्भर करता है कि आप कौन सा तरीका अपनाती हैं. उदाहरण के लिये बैंक में काम करने वाली महिला को जो विकल्प है वह घरेलु कामगार से फर्क होगा. आमतौर पर आपके पास चार विकल्प/रास्ते हैं.
1] ऑफिस में एक औपचारिक शिकायत दर्ज करनाप्रत्येक कंपनी का अपना कार्य प्रबंधन और आचार-व्यवहार का नियम तरीका होता है. यौन उत्पीडन का मामला अक्सर कंपनी के अनुशासन और नैतिकता का उलंघन माना जाता है. विशाखा गाइडलाइंस के अनुसार कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन कंपनी के आचार-व्यवहार नियम का हनन है और इसके खिलाफ़ कड़ी कार्यवाई होनी चाहिए.
1.अपनी संस्था में औपचारिक शिकायत दर्ज करने की समय अवधि के बारे में पता कर लें. कुछ संस्थाओं में यह 6 महीने है और अनौपचारिक प्रक्रिया के लिए कोई समय सीमा नहीं है. 2.शिकायत फॉर्म : शिकायत पत्र में निम्नलिखित ब्यौरा होना चाहिए a.शिकायत करने की तारीख b.शिकायत करने वाले और उत्पीडक का नाम और पद c.घटना का डीटेल ब्यौरा, तारीख, समय और घटना का सन्दर्भ d.यौन उत्पीडन की यदि एक से ज्यादा घटना हो तो शिकायत पत्र में तारीख और समय के अनुसार उसका सिलसिलेवार ब्यौरा लिखें. e.जो कोई भी घटना का गवाह है उसका नाम लिखें. इन गवाहों को इसमें सहमति होनी चाहिए. f.यदि उत्पीडक आपसे ऊँचे पद पर है तो शिकायत पत्र में इसका जिक्र करें. g.यदि आपने उत्पीडक की मांग को पूरा किया हो या उसका विरोध किया हो, इसका जिक्र करें. h.यदि कोई मौखिक टिका टिप्पड़ी की गई हो तो उसे भी लिख लीजिए. i.जितना संभव हो शिकायत में घटना का उतना डीटेल दें. 3.यौन उत्पीडन के केस पर ही फोकस करें ना कि काम संबंधी मुद्दों पर. 4.घटना के गंभीर पहलू को बार बार दोहराएँ. 5.औपचारिक शिकायत पत्र, एक कवरिंग पत्र और प्राप्ति की रसीद के साथ सज़ा देने जैसे कदम उठाने वाले अधिकारी को दें. 6.सुनिश्चित करें कि आपको शिकायत फॉर्म की प्राप्ति रसीद मिले. आपके द्वारा औपचारिक रूप से जमा किये गए शिकायत का यह महत्वपूर्ण सबूत है, बाद में मालिक भी इसे मना नहीं कर सकता कि आपने शिकायत पत्र नहीं दिया. 7.एक बार औपचारिक शिकायत पत्र मिल जाने के बाद मालिक उसे या तो लोकल पुलिस स्टेशन (जिस थाने के क्षेत्र के अंदर ऑफिस है) भेजेगा या उत्पीडक के खिलाफ़ कड़े कदम लेगा, उसे सज़ा दिलाएगा. 2] शिकायत समिति के पास केस दर्ज करना आपके पास शिकायत समिति के पास जाने का भी विकल्प है. विशाखा गाइडलाइंस के मुताबिक इस समिति में कम से कम 50 % महिला सदस्य और एक तिहाई सदस्य गैर सरकारी संस्थानों से होने चाहिए. यह विकल्प केवल संगठित सेक्टर के लिए है असंगठित सेक्टर के केस के लिए कोर्ट जाना पड़ेगा. नीचे दी गई बातों का ध्यान रखें.- यदि आप यौन उत्पीडन की शिकार हैं तो आप सीधे तौर पर शिकायत समिति को अपनी शिकायत भेज सकती हैं या उन्हें यह शिकायत डिसिप्लिनरी अधिकारी द्वारा भेजा जायेगा.
- इस समिति को यह अधिकार है कि ये आरोपी को अनौपचारिक रूप से पूछताछ के लिए बुला सकते हैं.
- यदि आपको लगता है कि शिकायत समिति का गठन ठीक से नहीं हुआ है तो आपको पूरा अधिकार है कि आप लिखित में अपनी शिकायत को डिसिप्लिनरी अधिकारी के पास दे सकती हैं. जैसे कि अधिकारियों की समिति में कोई सदस्य आरोपी के अंतर्गत काम करने वाला ना हो या फिर थर्ड पार्टी का प्रतिनिधि यौन उत्पीडन के मुद्दे पर समझ ना रखता हो.
- यदि केस पक्षपाती हो तो इसे सुलझाना मुश्किल है, चाहे आपके या आरोपी के पक्ष में, आपको हर स्थिति में घटना की सही जानकारी देनी है. इसीके साथ यदि आप थर्ड पार्टी को व्यक्तिगत रूप से जानती हैं, आपको अपने संपर्क के बारे में नहीं बताना चाहिए, क्योंकि हो सकता है इसे आपके खिलाफ़ इस्तेमाल किया जाए.
- आपको पूरा अधिकार है कि आप पूरी प्रक्रिया को गोपनीय बनाये रखें. यहाँ तक कि स्थिति की मांग की वजह से गवाहों को भी गोपनीयता बनाकर रखनी चाहिए (उदाहरण के लिए, उन्हें आरोपी द्वारा धमकी और उत्पीडन के केस होने की संभावना)
- पूछताछ के समय आप चाहें तो आपकी कोई मित्र या काउंसलर आपके साथ हो सकती है, कुछ मामलों में तो आपके साथ वकील भी हो सकता है. इसके आलावा आपके केस को समिति के सामने पेश करने के लिए आपको प्रस्तुतकर्ता अधकारी की सुविधा भी दी जा सकती है.
- सबसे बड़ी संभावना हो सकती है कि आपके पास कोई गवाह ना हो. इस तरह के केसों में घटना की सही और विस्तृत जानकारी महत्वपूर्ण भूमिका नीभा सकते हैं.
क्रिमिनल (आपराधिक) केस दर्ज करना
क्रिमिनल केस दर्ज करने का मतलब है आपने केस को दूर तक ले जाने का निर्णय लिया है. इसका मतलब है ज्यादा समय और खर्चा. यह एफ आई आर लिखने की प्रक्रिया से शुरू होता है. जैसा कि यह क्रिमिनल केस है तो अन्य लोगों द्वारा भी पत्र रजिस्टर्ड होगा. उदाहरण के लिए, शत्रुता पूर्वक काम के माहौल में सहकर्मियों का समूह जोइंट रूप से केस दर्ज कर सकता है. इसके साथ ही कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन के केस में मालिक पर क़ानूनी रूप से बाध्यता है कि वह पुलिस में शिकायत दर्ज करे.घर
हमारा घर अंतिम जगह होगा जहाँ हमारा उत्पीडन होगा. मगर यह दुःख की बात है कि यह उन जगहों में से एक है जहाँ औरत के खिलाफ हिंसा की शुरुआत होती है. “ मेरा बुजुर्ग मकान मालिक मेरे बारे में निजी सवाल करता है, मेरे परिवार के बारे में यहाँ तक कि मेरे पुरुष मित्रों के बारे में. कभी कभी वह मुझे असमय बुलाता है और मुझपर टिप्पड़ी करता है.” “ मेरे पति का करीबी का दोस्त एक बार घर आया जबकि उसे पता था कि मेरे पति काम के लिए गए होंगे. मैं बिल्कुल अवाक् हो गई जब उसने मुझसे निजी सवाल करने शुरू किये जैसे कि क्या मैं अपने पति के साथ खुश हूँ, और वह मुझे ज्यादा खुश रख सकता है. इस घटना के बारे में अपने पति से बात करते हुए मैं डरती हूँ....इस बात से मैं इतनी परेशान हूँ. क्या मेरे पति मुझपर विश्वास करेंगे?” घर के अंदर यौन उत्पीडन को पह्चानना बहुत ही ज़रूरी है. यह लंबे समय के लिए हो सकता है या गंभीर उत्पीडन में भी बदल सकता है.यह क्या है?
घर में होने वाली यौन हिंसा क्या है? यौन उत्पीडन में शामिल है अनचाहा यौनिक बर्ताव जैसे शारीरिक रूप से छूना या अश्लील टिप्पड़ी करना, अनचाहा यौनिक सम्बन्ध/ संपर्क की मांग करना या निवेदन करना या अन्य अनचाही यौनिक हरकत. यदि यह घर में या घर के आसपास उनलोगों द्वारा होता है जिन्हें हम जानते हैं (अंकल, पिता के दोस्त, दूर के रिश्तेदार, सुरक्षा कर्मी, दोस्त, एक ही कॉलोनी में रहने वाले, पड़ोसी आदि) तो यह घर में होने वाला यौन उत्पीडन कहलाता है. घर में होने वाला यौन उत्पीडन क्यों गंभीर है? घर में होने वाला यौन उत्पीडन इसलिए गंभीर है क्योंकि यहाँ आप उत्पीडक को जानती हैं और जो कि और भी ज्यादा तकलीफ़देह बात है. उत्पीडक आपका अंकल, परिवार के दोस्त का लड़का, दूर का रिश्तेदार, पड़ोसी, माकन मालिक और अपने ही पिता या भाई का दोस्त हो सकता है एन सी आर बी के आंकड़ों के अनुसार 18555 बलात्कार के केसों में उत्पीडक हिंसा सहने वाली के जान पहचान के थे, 35,2% पड़ोसी, 7.4% रिश्तेदार, 2% अपने अभिवावक, और 55.4% अन्य जानपहचान वाले थे. घटनाओं अपराधी परिवार के करीब है और अपने ठिकाने और दैनिक कार्यक्रम जानता है, खासकर अगर पूर्वचिन्तित जा सकता है। कौन कर सकता है ? कोई भी मर्द संभावित उत्पीडक हो सकता है: दूर का भाई, परिवार का दोस्त, दोस्त, पड़ोसी, पिता का दोस्त, भाई का दोस्त, दूर का संबंधी, करीब का रिश्तेदार, पड़ोसी का बेटा, मकान मालिक, सुरक्षा कर्मी, घरेलु कामगार, पोस्टमैन, प्लंबर मिस्त्री, बिजली मिस्त्री, सब्जीवाला, सेल्समैन, दोस्त का दोस्त और अजनबी, अन्य भी कोई. “मेरे मामा हमारे साथ कुछ दिन के लिए रहने आये. शुरू में मुझे लगा कि वे बहुत ही मिलनसार हैं. लेकिन फिर बाद में वह मुझे देर तक गले लगाने लगे, मेरे हाथ और कन्धों को रगड़ने लगे, और एक दिन तो उन्होंने मेरी छाती पर हाथ रखा. हालांकि उन्होंने तुरंत मुझसे माफ़ी मांगी, मगर मुझे पता था कि यह भूल से नहीं हुआ था. अब उनसे मुझे बहुत ही असहजता महसूस होती है.” उम्र और वैवाहिक स्तर से कुछ फर्क नहीं पड़ता है (उत्पीडक की या पीड़िता की) जो किसी को उत्पीडन करने से या उत्पीडन सहने से रोक सके. क्यों यह कानून के नज़र से ओझल और पहचाना नहीं जाता? यह इसलिए छिपा हुआ है क्योंकि कई लोग इसके खिलाफ रिपोर्ट ही नहीं करते ना कि इसलिए कि यह होता ही नहीं है. 1.महिलाओं को डर रहता है कि उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया जायेगा या उनका मजाक उड़ाया जायेगा. 2.हो सकता है कि उत्पीडन सहने वाली महिला ये सोचे कि इसमें उसीकी गल्ती थी. 3.जब परिवार के अंदर यौन उत्पीडन होता है तो इसे छुपाने और रफादफा करने का दबाव रहता है 4.गवाह जो परिवार के ही सदस्य हैं वे क़ानूनी प्रक्रिया के समय पीछे हट जाते हैं. 5.यह विश्वास किया जाता है कि यौन उत्पीडन से महिला इज्ज़त चली जाती है. रिपोर्ट करने से आगे उसकी और बदनामी होगी. क्या घर में होने वाला यौन उत्पीडन और बाल यौन हिंसा एक ही है? यौन उत्पीडन और बाल यौन हिंसा एकदूसरे से जुड़े हैं मगर एक ही नहीं हैं. बाल यौन हिंसा में हिंसा की शिकार एक अल्प वयसी है यानि 18 वर्ष से कम. जबकि यौन उत्पीडन कार्यस्थल पर, गली में, घर और कॉलेज में, अन्य के बीच हो सकता है. बाल यौन हिंसा प्राइवेट जगहों में होता है. क्या घर में होने वाला यौन उत्पीडन घरेलु हिंसा से फर्क है? यह निर्भर करता है. यौन उत्पीडन यदि रिश्तेदार, पति या साथ में रहने वाला साथी द्वारा किया जाता है जो एक ही छत के नीचे रहते हैं तो वह घरेलु हिंसा के दायरे में आएगा. जबकि उस केस में जब उत्पीडक परिवार का सदस्य तो है मगर एक ही घर के छत के नीचे नहीं रहता तो यौन उत्पीडन कहलायेगा.संभावित कदम
यदि आप इस समय घर के भीतर यौन उत्पीडन सह रही हैं तो आपका पहला कदम इसे रोकने का है. आपको यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि आप सुरक्षित हैं. इसके आलावा आपको यह अकेले सहने की ज़रूरत नहीं है. जिनपर आपको भरोसा हो उनको बताएं, खासतौर से जब आप 18 वर्ष से कम उम्र की हैं. आप अकेले ना बर्दाश्त करके इसे रोक सकती हैं. मदद मांगें. इसके बारे में रिपोर्ट करें. याद रखें कि यौन उत्पीडन एक जुर्म है. इसके बारे में रिपोर्ट करना न्याय पाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है. शायद आप अन्य लोगों को सामान उत्पीडन की स्थित से गुजरने के लिए बचा सकती हैं.व्यक्तिगत सुरक्षा
आपकी पहली प्राथमिकता है खुद की सुरक्षा. खुद को बचाने और अपने वातावरण को सुरक्षित रखना आपका मकसद होना चाहिये. नीचे दी गई सुरक्षा की रणनीति पूरी नहीं है. आपकी व्यक्तिगत यौन उत्पीडन की समस्या को शायद अलग तरह के उपाय की ज़रूरत हो.- यदि संभव हो तो खुद को तुरंत खतरे की स्थिति से हटा लें. जो भी तरीका काम आये उसे अपनाएं. कभो कभी मीठी बातें या थोड़ी बातें आपको स्थिति से बचने के बारे में सोचने के लिए समय दे सकती हैं.
- उत्पीडक के साथ अकेले रहने की स्थिति ना आने दें. आप सुनिश्चित करें कि जब उत्पीडक आसपास हो तो और लोग भी वहाँ हों. अकेला पाकर हो सकता है कि उत्पीडक आपको घेरने की कोशिश करे. मगर पहले से ही उसकी हरकतों के प्रति सावधान रहने से हो सकता है आप खतरे कि स्थिति से बच जाएँ.
- एमरजेंसी फोन नंबर सब समय अपने हाथ में रखें. अपने मोबाईल फोन में इस नंबर को स्पीड डायल नंबर पर दर्ज कर लें. इस तरह से आपको जब ज़रूरत होगी तो आप तुरंत फोन कर पाएंगीं और यह घटना का अहम सबूत भी होगा.
- आपको आत्म रक्षा क्लास ज्वाइन करने की ज़रूरत नहीं है (हालांकि यह अच्छा उपाय है यदि आपका पीछा किया जा रहा है) लेकिन घर के मामूली चीज़ें इस्तेमाल करने से मत हिचकिचाइए (कैंची, सेफ्टी पिन, चाकू वगैरह) या आप अपनी कोहिनी को भी हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं.
- एक पालतू जानवर के रूप में एक कुत्ते के बाद सुरक्षा की अपनी भावना को बनाए रखने के लिए एक अच्छा विचार है।
- आपनी बुद्धि का सही इस्तेमाल करके, जैसे सावधान रहकर, अपने मन की बात पर भरोसा करके, कॉमन सेन्स से, शारीरिक मजबूती से अपनी सुरक्षा कर सकती हैं.
- बिजली या पानी ठीक करने वालों को बिना उनके पहचान पत्र देखे घर के अंदर ना आने दें. यदि फिर भी आपको असहज लगता है तो उन्हें बाद में आने के लिए कहें जब घर में और लोग भी मौज़ूद हों.
उत्पीडक से सामना करना
उत्पीडक बहुत ही सावधानी से अपना शिकार ढूंढते हैं. वे ऐसी लड़की की तलाश में रहते हैं जो चुप रहेगी या विरोध नहीं करेगी. उन्हें नज़रंदाज़ करना थोड़े समय का ही समाधान है. चुप्पी को कई बार उत्पीडक जानबूझकर आपकी सहमति समझते हैं. उत्पीडक से सामना करने का सही तरीका है कि आप उसकी हरकत को जोर से बोलकर रोकें, जिसकी उम्मीद उसे नहीं होती है. आप जबतक चुप रहेंगी तबतक उत्पीडक का आपके ऊपर नियंत्रण बना रहता है. जैसे ही आप उसकी हरकत को नाम देकर रोकती हैं, आप उसे ये सन्देश देती हैं कि आप के ऊपर उसकी मर्ज़ी नहीं चलेगी. आप उसे बताती हैं कि उसने आपका दायरा तोड़ा है और उसकी यह हरकत आपके साथ नहीं चलेगी. उसे तुरंत वे हरकत वहीँ रोकनी होगी. हम सभी सशक्त होकर पैदा नहीं होते, तो इसका अभ्यास करना आवश्यक है. अपने व्यक्तिगत दायरों के बारे में जाने और जब इसका उलंघन हो तो सतर्क हो जाएँ. याद रखें कि आप उत्पीडक के हरकत का विरोध कर रही हैं जो आपको असहज बना रहा है ना कि आप उत्पीडक पर कोई हमला कर रही हैं. उत्पीडक के साथ सामना करने के कुछ तरीके- अपनी बात स्पष्ट, जोर से और सटीक रूप से कहें. ज़रूरत हो तो इसका अभ्यास करें. धीरे से और फुसफुसा कर अपनी बात ना कहें.
- जब आप बोलते हैं, सटीक जोर से और स्पष्ट है। एक नहीं, बकवास टोन का प्रयोग करें। यदि आवश्यक हो तो अभ्यास करें। कानाफूसी या धीरे बात मत करो।
- उसने जो किया है उसके लिए उसे ज़वाबदेह बनायें. आप कहें, “तुमने (विवरण के साथ).............जो किया वो यौन उत्पीडन है. मुझे परेशान करना बंद करो.” छोटे वाक्य बनायें; उत्पीडक से कोई सवाल ना करें वरना इससे उसे बहाने बनाने का मौका मिल जाएगा.
- आप मजबूत रहें, और अपनी बात पर डिगी रहें.
- यह आपका अधिकार है कि आप बातचीत खतम करें. आपको उसकी बात सुनने या उसे कुछ स्पष्टीकरण देने का मौका देने की ज़रूरत नहीं है. यदि वह बहस करता है तो तुरंत बातचीत बंद कर दें.
उत्पीडन को डोक्युमेंट (दस्तावेज) करना
इस बात का नोट रखें कि कब (तारीख, दिन और समय), कहाँ और किसके द्वारा आपका उत्पीडन हुआ था. नोट रखें कि किस तरह से उत्पीडन हुआ था और उत्पीडक की पहचान क्या है. यह बहुत ही ज़रुरी है यदि आप क़ानूनी कार्यवाई करना चाहती हैं. यदि आप लगातार उत्पीडन सह रही हैं तो इसे डोक्युमेंट में नोट करें कि आपको कैसा महसूस हुआ और आपने कैसे अपनी प्रतिक्रिया दी.दूसरों से बाँटना (शेयर करना)
आप जब तक यौन उत्पीडन के बारे में चुप रहेंगी तबतक आप उत्पीडक को यह ताकत दे रही हैं कि वह अपना उत्पीडन जारी रखे. जब आप किसी से इस बारे में बाँटती हैं तो आप यौन उत्पीडन को व्यक्तिगत स्तर से राजनैतिक स्तर तक ले जाती हैं. भरोसेमंद परिवार के सदस्य या दोस्त के साथ बाँटने में सिर्फ आपकी ही सुरक्षा नहीं है बल्कि इससे आप गवाह तैयार कर रही हैं. किसी से बाँटने से आपको अपनी भावनाओं और सदमे से सामना करने में मदद मिलती है. यदि उत्पीडक परिवार का ही कोई सदस्य है तो बाँटने से आप परिवार के किसी अन्य सदस्य को ऐसी ही घटना से बचाती हैं. आपके लिए बाँटना मुश्किल हो सकता है. लेकिन ऐसा ना करके आप ना केवल यौन उत्पीडन का समर्थन कर रही हैं बल्कि उत्पीडक का भी आपकी चुप्पी से हौसला बढ़ रहा है. इसलिए खामोश ना रहें, बोलें. यहाँ उत्पीडक की गल्ती है ना कि आपकी.एक सुरक्षित पड़ोस
स्थानीय समुदाय एक महत्वपूर्ण सुरक्षा का उपाय है. जब ज़रूरत हो तो आप पड़ोसी को मदद के लिए बुलाने से झिझकें नहीं. याद रखें आपके साथ यौन उत्पीडन हुआ है इसमें आपकी गल्ती नहीं बल्कि उस उत्पीडक की है. एक सुरक्षित पड़ोस का मतलब ना केवल एक सामाजिक जागरूक जगह का मौजूद होना है बल्कि यह आपको सुरक्षित भी रखता है. अपने रिहायशी इलाके में आप उत्पीडन जैसे हमले के वक्त किसे बुला सकती हैं इसे जानें. यौन उत्पीडन के खिलाफ़ सामाजिक चेतना जगाना इसे रोकने का महत्वपूर्ण तरीका है. सुरक्षित पड़ोस के लिए पहले से तैयारी में नीचे दी गई बातें शामिल हैं.- गली में लाइट, पब्लिक टेलीफ़ोन बूथ आदि जैसी सुविधा होना
- सार्वजनिक शौचालय में अच्छी लाइट और दरवाज़ों में लॉक का इंतज़ाम होना
- गाडी या पैदल सुरक्षा गार्डों द्वारा लगातार चक्कर लगवाना
- कॉलोनी में पड़ोसियों से मिलने आने वाले विसिटर्स की जांच करना. आने वालों के संपर्क नंबर और वो किससे मिलने आया है इसका रजिस्टर रखना.
- कॉलोनी में रहने वाले लोग अपने इलाके में लोगों को यौन उत्पीडन कानून के बारे में जानकारी दे सकते हैं, एमरजेंसी में ज़रुरी संपर्क की लिस्ट तैयार रख सखते हैं, जैसे कि पुलिस की, हेल्पलाईन की और एम्बुलेन्स की.
- महिला और पुरुष दोनों को शामिल करते हुए अपने इलाके में यौन उत्पीडन के बारे में जागरूकता अभियान चलायें. इस सामुदिक प्रोजेक्ट में युवा लोगों को शामिल करें, जैसा कि वे बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
- रिहायशी इलाके/ कॉलोनी मिलकर गली में लड़कियों के साथ यौन उत्पीडन करने वाले लड़कों को सबक सीखा सकते हैं. इस तरह के केसों में, लड़कों को चेतावनी देने या पुलिस में शिकायत दर्ज करने से लंबे समय तक लड़कियां खुद को इलाके में सुरक्षित महसूस कर सकती हैं.
क़ानूनी उपाय
यौन उत्पीडन एक अपराध है. लेकिन जब यह घर में घटित होता है तो क़ानूनी तरीका इस्तेमाल करना कठिन हो जाता है. यदि आपको लगता है कि आपको क़ानूनी रास्ता अपनाना होगा तो नीचे दी गई जानकारी उपयोगी साबित हो सकती है:आपराधिक तरीका
जब आप आपराधिक केस फाइल करने का चुनाव करते हैं, तो आपको इसकी जानकारी होना ज़रुरी है.- आपराधिक तरीके की शुरुआत एफ आई आर दर्ज करवा कर होती है. यह पहला जानकारी रिपोर्ट है जिसे पीड़िता पुलिस को देती है और इसके बाद ही न्याय के लिए प्रक्रिया शुरू होती है. हालांकि, एफ आई आर दर्ज कराने के पहले कग्निजिबल और नॉन- कग्निजिबल के बीच के फर्क को समझ लेना चाहिए. यौन उत्पीडन एक कग्निजिबल अपराध है.
- एक बार जब एफ आई आर दर्ज हो जाता है तब एक जांच अधिकारी को मामले की जांच की ज़िम्मेदारी दी जाती है. इस जांच के आधार पर पुलिस तय करती है कि आरोपी को गिरफ्तार किया जाए या नहीं. जांच के बाद पुलिस को एक चार्ज शीट तैयार करनी होती है जिसे मजिस्ट्रेट के सामने जमा देना होता है.
- इसके बाद केस को कोर्ट के पेश किया जाता है, जहाँ आरोपी या तो न्यायिक हिरासत (कग्निजिबल केस के लिए) में भेजा जाता है या पुलिस और आगे जांच के लिए आदेश लेती है (नॉन- कग्निजिबल केस के लिए).
- कोर्ट द्वारा फिर आरोपों की जांच और बहस होती है, जहाँ आरोपी से उसने अपराध किया या नहीं के लिए अपना पक्ष रखने के लिये कहा जाता है.
- गवाहों और सबूतों दोनों ही पक्ष (आरोपी और बचाव) द्वारा फिर से जांच किया जाता है.
- दोनों पक्षों द्वारा बहस और तर्क पेश किये जाते हैं
- अंत में फैसला सुनाया जाता है, जहाँ आरोपी को या तो सज़ा दी जाती है या उसे छोड़ दिया जाता है.
पुलिस द्वारा तुरंत कार्यवाई
यदि आप किसी ऐसी स्थिति में फंसी हैं जहाँ आपको पुलिस की मदद तुरंत चाहिए तो 100 नंबर पर फोन करने से ना हिचकिचाएं. आपका फोन तुरंत पास के पुलिस कंट्रोल रूम में पहुँच जाएगा.प्राथमिक जानकारी रिपोर्ट (एफ आई आर) दर्ज करना
यौन उत्पीडन को रोकने का तरीका है इसकी पहचान. आपको अक्सर लोग यह कहते हुए मिल जायेंगे कि इसका कुछ मतलब नहीं है या आप कुछ जयादा ही इसे तूल दे रही हैं. कुछ लोंगों के लिए यह “टाइम-पास” हो सकता है मगर एफ आई आर दर्ज करवा कर आप उन्हें बताती हैं कि यह एक अपराध है. एफ आई आर दर्ज करते समय नीचे दी गई बातों का ध्यान रखें.........- एफ आई आर हमेशा पुलिस स्टेशन में दर्ज करना होता है. हालांकि यह ज़रुरी नहीं कि इसे पीड़िता को ही दर्ज करना चाहिए. यह गवाह या पुलिस अधिकारी (जिसे अपराध के बारे में जानकारी हो) द्वारा भी दर्ज कराया जा सकता.
- एफ आई आर दर्ज करने में बहुत देरी ना करें. यह बात सच है कि आप पूरे मामले को लेकर बहुत चिंतित हैं मगर बिला वजह देर करने से क़ानूनी प्रक्रिया में रुकावट हो सकती है.
- एफ आई आर में यौन उत्पीडन की घटना होने का समय, स्थान और तारीख, आरोपी की पहचान या अन्य किसी ने जो उसकी मदद की है, वो दर्ज होनी चाहिए. यदि उत्पीडक कोई अजनबी था, तो जितना हो सके घटना और उत्पीडक के बारे में जानकारी दें.
- जितना संभव हो घटना के बारे में सही सही जानकारी दें. उदाहरण के लिए यदि आपको कोई पकड़े या छुये तो आपको बताना चाहिए कि कैसे और कहाँ.
- यदि आपको आरोपी की तरफ से लगातार धमकी या आपकी व्यक्तिगत सुरक्षा को कोई खतरा है तो एफ आई आर में इसका ज़िक्र करें.
- जिस इलाके में यौन उत्पीडन की घटना हुई है वहीँ केस का एफ आई आर दर्ज होना चाहिए. यदि आपके साथ यौन उत्पीडन आपके घर या उत्पीडक के घर जहाँ भी हो उसी इलाके के पुलिस स्टेशन में आपको जाना चाहिए.
- साइन करने से पहले एक बार एफ आई आर को दोबारा पढ़ लेना चाहिए
- एफ आई आर की कॉपी पर ड्यूटी अधिकारी का साइन और पुलिस स्टेशन स्टाम्प होना चाहिए.
- आपको एफ आई आर की एक कॉपी मुफ्त मिलनी चाहिए यह आपका अधिकार है
- आप जब एफ आई आर दर्ज करती हैं तो याद रखें कि आप जितना जानती हैं वही जानकारी दे रही हैं, उसको साबित करने की ज़िम्मेदारी आपकी नहीं है.
कग्निजिबल अपराध | नॉन- कग्निजिबल अपराध |
---|---|
1. ऐसा अपराध जो सीधे तौर पर पुलिस के दायित्व के अंतर्गत आता है 2. प्रक्रिया शुरू करने के लिए एफ आई आर का दर्ज होना ज़रुरी है 3. पुलिस बिना वारेंट के भी गिरफ्तार कर सकती है 4. शिकायत कर्ता को क्रिमिनल कोर्ट में न्याय के लिए जाना पड़ता है | 1. इस तरह के केस में पुलिस की कोई भी ज़िम्मेदारी नहीं है. जांच करने के लिए उन्हें मजिस्ट्रेट के आदेश की ज़रूरत होती है. 2. पुलिस को नॉन- कग्निजिबल रिपोर्ट फाइल करने की ज़रूरत होगी, उसके बाद इसे मजिस्ट्रेट को भेजना होगा 3. पुलिस को वारेंट (मजिस्ट्रेट से) जारी करने के ज़रूरत पड़ती है 4.न्याय के लिए शिकायत कर्ता को सिविल कोर्ट में जाना पड़ता है |
कॉलेज
“ यदि मुझे एक टीचर होने के नाते व्यवस्था के साथ लड़ना होगा जिससे बहुत कम सहयोग की उम्मीद है तो एक छात्रा मदद के लिए कहाँ जायेगी? उत्पीडन जो महिला छात्रा अपने टीचर द्वारा सहती हैं वह बहुत ज्यादा और छुपे तौर पे है.” इंग्लिश प्रोफ़ेसर, लखनऊ विश्वविद्यालय, [ नवंबर 2003, इंडिया टुगेदर] हम ज्यादातर कॉलेज की जिंदगी को आज़ादी और मस्ती से जोड़कर देखते हैं. हालांकि, किसी और के कीमत पर किसी की मस्ती एक बुरे सपने में बदल जाती है. कॉलेज में होने वाला यौन उत्पीडन ऐसा ही एक खतरा है.आपके सवाल
कॉलेज में होने वाले यौन उत्पीडन का क्या मतलब है? कॉलेज में होने वाले यौन उत्पीडन से मतलब है छात्रों के बीच होने वाला अनचाहा शारीरिक और मौखिक यौन संपर्क. ‘कॉलेज’ शब्द में केवल जहाँ क्लासेस होती हैं सिर्फ वही जगह नहीं है बल्कि इसमें सार्वजनिक जगह, रिहायशी जगह जैसे होटल, स्टाफ के रहने की जगह, अन्य संस्थान और प्रशाशिनिक जगह आदि शामिल है. याद रखें कि ज़रुरी शब्द यहाँ अनचाहा है. यह कई स्तर पर हो सकता है और इसका असर कई रूपों में हो सकता है: छात्रों के बीच, छात्र और स्टाफ के बीच, स्टाफ के बीच, स्टाफ और प्रिंसिपल के बीच, प्रिंसिपल और छात्रों के बीच या छात्रों और कॉलेज में आने वाले विसिटर्स के बीच. प्रत्येक संबंध का अपना ही सन्दर्भ, आंकड़ा और सत्ता का रूप होता है. यह एक बार होने वाली घटना हो सकती या लगातार होने वाला वाकया. यह या तो केवल एक पुरुष द्वारा या फिर पुरुषों के समूह द्वारा हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1997 में विशाखा गाइडलाइंस आने के बाद निजी हो या सार्वजनिक सभी कॉलेजों में यौन उत्पीडन के खिलाफ़ सुनवाई की व्यवस्था अनिवार्य कर दी गई है. मालिक (निजी हो या राज्य के अंतर्गत) की यह संविधानिक ड्यूटी है कि वह सुरक्षित शिक्षा और कार्यस्थल (काम की जगह या पढ़ने की) मुहैया कराये. यह क्या रूप ले सकता है? यौन उत्पीडन कई तरह के रूप ले सकता है मौखिक और मानसिक से लेकर शारीरिक तक. “ यौन उत्पीडन इतना गुप्त होता है कि इसके बारे में शिकायत तभी बाहर आती है जब इसे बर्दाश्त करना असहनीय हो जाता है. जैसे कि राजस्थान सेवा संघ कॉलेज के छ स्टाफ का मामला.” – एक वकील, [ टाइम्स ऑफ इंडिया, 29/02/2004] प्राथमिक रूप से ये दो प्रकार के होते हैं: क्विद प्रो को और शत्रुता पूर्वक काम का माहौल क्विद प्रो को में शामिल है यौनिक संबंध के लिए पूछना/निवेदन करना/मांग करना और बदले में मार्क्स बढ़ाने, प्रमोशन देने आदि की शर्त रखना. यहाँ यदि पीड़िता अपनी सहमति देती है फिर भी यह यौन उत्पीडन ही कहलायेगा क्योंकि यह दबाव में आ कर दी गई सहमति है. क्विद प्रो को सीधा और स्पष्ट होता जो आसानी से समझ आता है. शत्रुता पूर्वक काम का माहौल, यौन उत्पीडन का वह रूप है जो कॉलेज के माहौल को महिला छात्रों, महिला टीचरों और अन्य लोगों के लिए असुरक्षित बनाता है. यह अस्पष्ट और बड़े पैमाने पर छिपा होता है. नीचे दिए गए इस तरह के यौन उत्पीडन के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:- गैर मौखिक यौनिक हरकतें जैसे शरीर के हिस्सों को घूरना, आपको छूते हुए या ढकेलते हुए निकल जाना, बिना वजह गले लगाना और अश्लील भाव भंगिमा बनाना
- मौखिक टिपण्णी करना जैसे अश्लील छींटाकशी, गाने और चुटकुले सुनाना, आपसे यौनिक संबंध की मांग करना और आपके चरित्र के बारे में झूठी अफवाहें उड़ाना.
- आपके मना करने के बावजूद आपको उसके साथ बाहर जाने के लिए जोर देना
- आपकी इच्छा के विरूद्ध आपको अश्लील सामग्रियां दिखाना, सन्देश भेजना और चित्र दिखाना
- शारीरिक उत्पीडन जैसे घेरना, छूना, लोगों के सामने चुम्बन लेना और गले लगाना
- आपको ज़बरदस्ती शराब पिलाना, सिगरेट पिलाना या ड्रग्स खिलाना
- घर जाते समय आपका पीछा करना और आपके बारे में झूठी अफवाह फैलाना. वह ईमेल, चिठ्ठी, फोन एसेमेस और फोन से भी आपका पीछा कर सकता है.
- टीचर का प्रिंसिपल द्वारा छुट्टी की मंजूरी के लिए उत्पीडन करना (यह क्विद प्रो को है)
- लड़कियों के लिए टोइलेट्स और मेडिकल सुविधा ना होना
- आप महिला हैं इसलिए बार बार आपके काम में कमियां निकालना
- लड़की को परीक्षा में पास करने के लिए उससे यौनिक संबंध की मांग करना (यह क्विद प्रो को है)
- आपकी यौनिक पहचान को लेकर (प्राइवेट में या सार्वजनिक में) मजाक बनाना
संभावित कदम
“पहले तो, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हिंसा के बाद पीड़ित पूरी तरह से खामोश नहीं रहती...औपचारिक शिकायत के पहले पीड़िता अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से बताती है. उसके बाद शायद औपचारिक लोगों से कहती है जैसे सहकर्मी और अधिकारी से.” [द हिंदू 29/09/2002] इसके बारे में बात करना और इसे यौन उत्पीडन का नाम देना पहला महत्वपूर्ण कदम है. इससे इसका सामना करने में आत्मविश्वास आता है.अनौपचारिक रणनीतियां
“ज्यादातर छात्र शिकायत दर्ज करवाकर पीछे हट जाते हैं, जबकि अन्य आपस में ही निपटा लेना ठीक समझते हैं.” टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस लेक्चरर, [टाइम्स ऑफ इंडिया, 8/08/2002] अनौपचारिक रणनीतियाँ वे हैं जो आपकी निजी सुरक्षा से सरोकार रखती हैं. ये रणनीतियाँ दरसल उत्पीडक से सामना करने के उपाय हैं जो आपके निजी सुरक्षा का भी ध्यान रखती हैं. आपका उद्देश्य होना चाहिए कि आगे आपके साथ कोई हिंसा न हो. इस स्तर पर, हम आपके साथ वे रणनीतियाँ बाँटेंगे जो आपको यौन उत्पीडन से सामना करने में आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगी और साथ ही आप अपनी रणनीतियाँ भी बना सकेंगीं. जैसे ही उत्पीडन हो उसी समय अपनी आवाज़ उठाना सबसे महत्वपूर्ण है. इससे उत्पीडक को यह सन्देश मिलता है कि आपके साथ यौन उत्पीडन करना आसान नहीं है. इसके आलावा, हम आपकी मदद करते हैं कि आप इसके खिलाफ़ औपचारिक कदम उठाने में खुद की तैयारी कर सकें.उत्पीडक का सामना करना
बोलने से न केवल आप अपने ऊपर हो रहे उत्पीडन को रोकती हैं बल्कि इससे उत्पीडक दोबारा किसी के साथ ऐसी हरकत करने से पहले सोचेगा. आपके ऊपर हो रही यौन उत्पीडन को रोकने की मांग आप अधिकार है! भले ही उत्पीडक साथ पढ़ने वाला साथी हो, टीचर, दोस्त का दोस्त, कोई पहचान वाला, सफाई कर्मचारी, नॉन-टीचिंग स्टाफ, लाइब्रेरियन, खेल कोआर्डिनेटर, लैब असिस्टेंट या प्रसाशन अधिकारी या अन्य. यौन उत्पीडन उस समय और भी गंभीर हो जाता है जब कोई लेक्चरर, हेड ऑफ द डिपार्टमेंट या प्रिंसिपल करता है. याद रखें, किसी भी तरह का क्विद प्रो को उत्पीडन इंडियन पिनल कोड के तहत अपराध है और मानव अधिकार का हनन है. जब आपके साथ यौन उत्पीडन हो तो इसके खिलाफ़ बोलें. यदि उत्पीडक आपसे ऊँचे दर्जे पर हो तो आप मजबूत बनी रहें. यदि वह आपका दोस्त है तो खुलकर कहें. आत्मविश्वास के साथ बोलें. उत्पीडक तुरंत उत्पीडन बंद करे इसकी मांग करें! ‘क्या करें’ और ‘क्या ना क्या करें’ के बारे में पढ़ें क्या करें- जब आप प्रतिरोध करें तो सीधे बात करें. स्पष्ट रूप से कहें कि उसने क्या किया और कैसे आपके लिए ये बर्दाश्त करने लायक नहीं है. आपकी आवाज़ में स्थिरता, मजबूती रहे. ज़रूरत हो तो अभ्यास करें, “ मुझे बहुत आपत्तिजनक लगा जिस तरह से (...........) उस दिन (...........) किया और मैं कहती हूँ कि इसे तुरंत बंद करो. औरतों के साथ यौन उत्पीडन बंद करो.” यदि उत्पीडक अजनबी हो तो उसे उसी तरह जवाब दें, “तुम इसे.......बंद करो. यह यौन उत्पीडन है. औरतों का उत्पीडन बंद करो.
- उसे बताएं कि उसका बर्ताव आपत्तिजनक है और यह यौन उत्पीडन है. यह खासतौर पर उत्पीडक को उसकी हरकत बताने लिए कहना चाहिए. उदाहरण के लिए जब आपके पुरुष दोस्त कोई आपत्तिजनक चुटकुला सुनाएँ और आपको महिला होने के नाते आपत्ति है तो उन्हें टोकें.
- आप उसे बताएं कि आप चुप नहीं रहेंगी. यौन उत्पीडन के खिलाफ़ बोलना आपका सिद्धांत है. इसका यह भी मतलब है कि आप खुद का इतना सम्मान करती हैं और अपना बचाव कर सकती हैं.
- यदि ज़रूरत हो तो उसके हरकत को सबके सामने लायें.
- आप यह समझें कि मज़ा-मस्ती/फ्लर्ट करना/दोस्त बनाना वैसा ही नहीं है जैसे यौन उत्पीडन. ये दोनों अलग हैं
- उत्पीडक को यह बताएं कि यौन उत्पीडन एक अपराध है और वह इसके लिए वह जेल भी जा सकता है!
- अपने टोन को गंभीर रखें. यौन उत्पीडन बंद हो इसके लिए आपका इरादा पक्का हो.
- सामना करते समय अपने शारीरिक भाव को कंट्रोल में रखें. मजबूत बने रहें और सीधे उसकी आँखों में देखें. बात करते समय सीधी खड़ी रहें और अपनी आवाज़ स्थिर रखें.
- याद रखें, हंसी मजाक कर पाने की कला का यौन उत्पीडन से कुछ लेना देना नहीं है. उत्पीडक को बताएं कि आपकी कीमत पर वह मजा करे तो यह मुमकिन नहीं है.
- उसके बुरे बर्ताव पर ही बात को केंद्रित रखें.
- याद रखें, यदि पहले उसके साथ आपका संबंध भी क्यों न रहा हो, अब आपके साथ किसी तरह की ज़बरदस्ती करने का अधिकार उसे नहीं है. खासतौर से जब आप ना चाहती हों.
- याद रखें, यह आपका अधिकार है कि आप बातचीत खत्म करें. आपको उससे लगातार बहस करने की या कोई स्पष्टीकरण देने की ज़रूरत नहीं है. यदि वह बहस करता है तो, बीच में ही उसे टोक कर बातचीत खत करें.
- जोर से हसें नहीं, ना ही मुस्कुराएँ, रोयें या बात करते समय लडखडायें
- उस पर न चिल्लाएं और ना ही सामान फेंकें. उससे बात करते समय अपना आप ना खोएं.
- उत्पीडक का सामना करते हुए कमजोर आवाज़ और डरे हुए अंदाज़ में बात ना करें.
- उत्पीडन के लिए कोई बहाना ना दें. और ना ही उसका बचाव करें. यदि आपको उसके बर्ताव से चोट लगी हो या आपत्ति हो, तो कहें. उसके बुरे बर्ताव को यह मान कर ना टालें कि आपमें उसकी दिलचस्पी है या उसका स्वभाव ही ऐसा है या वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकता. जो हुआ है उसे नकारे नहीं.
- उसके बहाने और बहस को ना सुने. यदि ज़रूरत हो तो उसे टोकें.
- यदि ज़रूरत हो तो शारीरिक रूप से प्रतिक्रिया देने में ना झिझकें.
- किसी भी सूरत में उत्पीडक के किये गए बर्ताव के लिए खुद को दोषी ना मानें.
- बहुत देर तक मामले को लटकाए ना रखें. जल्दी और सटीक बात करें.
- उत्पीडक के बारे में कोई भी जानकारी नज़रंदाज़ ना करें.
- यह ना सोचें कि यौन उत्पीडन झेलने वाली आप अकेली हैं. और भी कई लोग हो सकते हैं जो इस अनुभव से गुज़र रहे हैं.
उत्पीडन को डोक्युमेंट करना
एक नोट बनाकर रखें कि कब (तारीख, दिन और समय), कहाँ और किसके द्वारा आपके ऊपर उत्पीडन हुआ है. नोट करें कि घटना कैसे हुई और उत्पीडक की पहचान क्या थी. आपको क़ानूनी कार्यवाई करने के लिए ये जानकारी महत्वपूर्ण है. यदि आप लगातार उत्पीडन का शिकार हो रही हैं तो नोट में दर्ज करें कि घटना के वक्त आपको कैसा महसूस हुआ और आपने कैसे जवाब दिया.बाँटना (शेयरिंग)
विरोध करने का मकसद सिर्फ उत्पीडक से सामना ही करने का नहीं है बल्कि घटना को सबके सामने लेन का भी है. जिस घडी आप घटना को अपने परिवार/दोस्तों/सहकर्मियों के साथ बाँटती हैं तो फिर यह निजी मुद्दा नहीं रह जाता. हम समझते हैं कि आप डरी होती हैं, लेकिन जब आप बाँटती हैं हो उत्पीडक के इस भ्रम को तोडती हैं कि आप खामोश रहेंगीं. याद रखें, महिला हिंसा के खिलाफ़ कोई भी मामला चाहे वो यौन उत्पीडन हो या घरेलु हिंसा यह आपका निजी मामला नहीं है. यह सामाजिक मामला है, एक अपराध है. अपने स्तर के ही लोगों से बाँटने का मतलब है कि आप गवाह तैयार कर रही हैं. वे इस बात के भी गवाह हैं कि घटना का आप पर किस तरह का असर हुआ है. उस समय यह भी हो सकता है कि आप अन्य महिलाओं को भी इसका शिकार पायें. आपके बात करने से अन्य महिलाएं भी ऐसी घटनाओं के लिये सतर्क हो जायेंगीं.व्यक्तिगत सुरक्षा
“ आप मुझे ऐसे बॉस दिखाएँ जिनकी नज़रें और हाथ आप पर नहीं चलते, मैं आपको दस ऐसे दिखा सकती हूँ......उसने मेरा डिप्लोमा कोर्स करना नामुमकिन कर दिया था.” दिल्ली युनिवर्सिटी की एक लेक्चरर जिसका हेड ऑफ द डिपार्टमेंट ने यौन उत्पीडन किया था. [द हिंदू, 20-2-2000] एक ही यौन उत्पीडन का अनुभव छात्रों की सुरक्षा की भावना को भंग कर सकती है जो वे अपने क्लास रूम में महसूस करती हैं. यह बहुत ही पीड़ादायक अनुभव है. सुरक्षा के भाव को तैयार करना ज़रुरी है. जब आपका यौन उत्पीडन होता है, इसे ठीक होने में काफी समय लगता है. मगर ना केवल पीड़िता की सुरक्षा के लिए ही बल्कि आगे होने वाले यौन उत्पीडन से बचाव के लिए भी एक सुरक्षा नेट होना ज़रुरी है. कॉलेज के अंदर किस तरह से निजी सुरक्षा को सुनिश्चित करें इसके बारे में पढ़ें.- आपका सबसे पहला मकसद होना चाहिए कि खतरे की स्थिति से खुद को दूर रखें.
- आपको चाकू या मिर्ची पाउडर साथ रखने कि ज़रूरत नहीं है. उसके बदले छोटी वस्तुएं जैसे पेन, डीओ, सेफ्टी पिन, हेयर पिन, चाभी, किताबें, छाता, बैग, कोहिनी आदि आपके हथियार हो सकते हैं.
- यदि आप ऐसी स्थिति में फंस जाती हैं जहाँ उत्पीडक हिंसक है, तो देखें यदि आप मीठी मीठी बातों/ झूठे वादे करके उससे बच निकल पाती हैं.
- जैसे ही कोई आपका उत्पीडन करने की कोशिश करे उसे आप तुरंत जवाब दें. ज्यादातर उत्पीडक यह उम्मीद नहीं करते कि आप विरोध करेंगी या बोलेंगीं. वह तभी निशाना बनाता है जब उसे लगता है कि आप उससे डरती हैं या अपनी बात रखने में शर्मायेंगी.
- जब उत्पीडक अंजान होता है तो उसे जवाब देना आसान होता है, जब हम उत्पीडक को जानते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं. जो कोई भी हो, आप यह बात याद रखें कि यह यौन उत्पीडन है और एक अपराध है.
- जब आपको आपत्ति हो आप उसी समय टोकें. इतना भर ही उत्पीडक का हौसला तोड़ सकता है जैसे कि उसने सोचा नहीं होगा कि आप बोल पड़ेंगीं.
- इमरजेंसी नंबर हमेशा अपने साथ रखें. आपने फोन में स्पीड डायल में सेव करके रखें ताकि ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकें और गवाह भी तैयार कर सकें.
- जब आपके साथ यौन उत्पीडन हुआ हो तो अपने भरोसेमंद दोस्तों को इसकी जानकारी दें.
- जिससे आप नहीं बताना चाहती उससे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं हैं. अपनी निजी जानकारी उन लोगों को देने की ज़रूरत नहीं है.
- यह चुनना आपका अधिकार है कि आप किसके साथ बाहर जाएँ. जिसके साथ नहीं जाना उसे ‘ना’ कहने का आपको हक है.
- आपको जब ज़रूरत हो तो मदद की मांग करें.
- जब कोई अधिकारी आपके साथ गलत बर्ताव करे तो इसे अन्य लोगों के साथ बांटें.
आपना दायरा तय करना
“मुझे उतनी ही आपत्ति हुई जितना कि लिफ्टमैन मुझे घूर रहा था और मेरे साथ का छात्र जो कि देखने में अमीर लगता है.” वकील, [विमेंस फ़ीचर सर्विस, 23/05/2009] हर इंसान का अपना निजी और सुविधाजनक दायरा होता है. इस दायरे का मतलब है कि उस इंसान के लिए किसी भी व्यक्ति का कौन सा व्यवहार स्वीकार करने के लिए है और कौन सा नहीं. व्यक्ति व्यक्ति के लिए ये दायरा फर्क होता है, उनको बर्दाश्त करने का स्तर, उनसे नजदीकी, उनका जेंडर, सन्दर्भ और स्थिति. अपनी दोस्ती में, निजी रिश्ते में और काम के रिश्ते में यह दायरा बनाना बहुत ज़रुरी है. कुछ हद तक हम इसे गंभीरता से नहीं लेते फिर हमारे दायरे को जब कोई लांघता है तो हम शाक्ड (अवाक्) हो जाते हैं. उदाहरण के लिए एक लेक्चरर छात्रों को बिला वजह गले लगता है, छूता है तो उन्हें बहुत अटपटा और खराब लगता है. यह उनके दायरे का उलंघन है जो उन्होंने अपने लिए तय किया है. इन दायरों का केवल शारीरिक रूप से ही उलंघन नहीं होता, बल्कि मौखिक भी हो सकता है, जैसे निजी सवाल करके या कुछ खास तरह के आपसे सवाल करके. आपस के दोस्तों में ये दायरे हलके होते हैं. सबसे महत्वपूर्ण है कि हम किसे इन दायरों के अंदर आने देते हैं और किससे दूरी बनाकर रखते हैं. अपने दायरे को तय करने में महत्वपूर्ण बात है कि ‘ना’ कहना जब इसका कोई उलंघन करता हैं. इस मामले में आपको ईमानदार, सपाट और बोलने वाला होना चाहिए. आप इस प्रक्रिया में हो सकता है कि किसी के इगो को चोट पहुंचाएं मगर यहाँ खुद की सुरक्षा ज्यादा ज़रुरी है.अर्ध-औपचारिक रणनीतियाँ
“ शिक्षा के क्षेत्र और सरकारी दफ्तरों में आश्चर्यजनक रूप से उत्पीडन बहुत ज्यादा है. हमारे पास कॉलेज से कुछ केसों की शिकायते आई कि वहाँ पुरुष टीचर्स महिला टीचर्स पर अश्लील टिप्पणियाँ करते हैं और उनसे यौनिक संपर्कों की मांग करते हैं.” जाग्रति महिला संगम की एक कार्यकर्ता, द हिंदू, 27/08/05 अर्ध-औपचारिक रणनीतियाँ वे हैं जो पूरी तरह से औपचारिक तरीकों के पहले आती हैं. आप शिकायत करते हैं (लेकिन लिखित रूप में नहीं), ना केवल उत्पीडक को, बल्कि लेक्चरर को, यूनियन और छात्र समूहों को, प्रिन्सिपल या शिकायत समिति को.तथ्य खोज की प्रक्रिया
इस स्तर पर आ कर आप जितनी जानकारियां एकत्रित कर सकते हैं करें. इससे ना केवल आपको किसी ठोस निर्णय पर पहुँचाने में ही मदद मिलेगी बल्कि आप उनलोगों की सहायता भी कर सकते हैं जो ख़ामोशी में इससे पीड़ित होते रहते हैं. तथ्य खोज की प्रक्रिया की चेक लिस्ट- क्या आपके कॉलेज में शिकायत या यौन उत्पीडन सेल है? यदि नहीं, तो सुनवाई और सहायता के लिए विकल्प क्या है?
- औपचारिक शिकायत दर्ज करने के लिए आपको क्या करने की ज़रूरत है?
- क्या लेक्चरर को यह अधिकार है कि वो इस मामले में आपकी मदद कर सकें?
- यदि आप खुद एक लेक्चरर हैं और आपके सहकर्मी या प्रिन्सिपल ने आपका उत्पीडन किया है तो क्या आप समिति के पास जा सकते हैं?
- आपका केस पुलिस के पास जाने लायक कितना मजबूत है? वकील से चेक करें
- क्या सेल या समिति आपके ऊपर आगे होने वाले उत्पीडन से बचाव करेगी?
- क्या इस प्रक्रिया की आपको कोई कीमत चुकानी होगी?
- क्या आप पूरी प्रक्रिया को गोपनीय रख सकते हैं? किस हद तक?
- शिकायत दर्ज करने से लेकर उत्पीडक को सज़ा दिलाने तक कितना समय लगेगा?
लेक्चरर/हेड ऑफ डिपार्टमेंट/प्रिन्सिपल से शेयर (बाँटना) करना
“सुबह 11 बजे मुझे दूसरे छात्र के साथ जाना था, लेकिन मैं ऐसा कर नहीं पाई, मैं उससे शाम 5 बजे मिली. तबतक, अधिकतर टीचर्स जा चुके थे. प्रिंसिपल जानबूझकर मुझपर चिल्लाये और मेरे मातापिता को बता देने की धमकी दी. मगर जब मैं रोने लगी तो वो मेरे पास मुझे चुप कराने आया...और फिर मेरे स्तन को छूने लगा” 19 वर्षीय कामर्स की छात्र, जिसे उसके टीचर्स ने सांत्वना देकर कॉलेज में पढते रहने के लिए समझाया. [डीएनए, 02/12/2007] लेक्चरर ना केवल महत्वपूर्ण सहायता के स्त्रोत हैं बल्कि यदि आपके साथ यौन उत्पीडन हुआ है तो वे आपको गाइड भी कर सकते हैं. मामला और गंभीर हो जाता है जब उत्पीडक खुद ही एक लेक्चरर हो. इन केसों में आपको खासतौर पर अनौपचारिक रूप से किसी भरोसेमंद टीचिंग स्टाफ सदस्य या समिति सदस्य जैसे राष्ट्रीय सोशल सर्विस को बताना चाहिए.गवाह तैयार करना
सबसे ज्यादा यौन उत्पीडन की घटनाएँ तब घटती हैं जब आपको जबरन कहीं अकेला किया जाता हैं या किसी बंद परिवेश में रखा जाता है. खुद की मदद करने का एक तरीका है कि यौन उत्पीडन होने की घटना का एक गवाह तैयार किया जाये. इसका मतलब है कि आप अपना अनुभव किसी खास व्यक्ति के साथ बांटें. यह व्यक्ति समिति या कोर्ट के सामने स्टेटमेंट देने को तैयार रहे.अनौपचारिक बात चीत
हालांकि, आपको यौन उत्पीडन समिति के पास औपचारिक शिकायत दर्ज करवाना चाहिए मगर साथ ही किसी सदस्य से अनौपचारिक बातचीत करना भी अच्छा रहेगा. इससे आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि औपचारिक शिकायत करने से आपको इससे क्या उम्मीदें हैं और इसका परिणाम क्या होगा. इसके अलावा इससे आपको औपचारिक शिकायत दर्ज करने के अपने विकल्पों को परखने में भी मदद मिलेगी.यूनियन से बात करना
“ हमने जीएसकैश नाम की एक बॉडी बनाई (यौन उत्पीडन के खिलाफ़ जेंडर संवेदनशीलता समिति) जिसमे छात्र, टीचर्स और शिक्षक प्रतिनिधित्व के साथ वार्डेन भी शामिल हैं. यह समिति यौन उत्पीडन के मामलों की रिपोर्ट करती है, मोनिटर और जांच करती है. जबसे यह समिति बनी है चालीस केस फाइल हो चुके हैं और पांच व्यक्तियों को कड़ी सज़ा मिल चुकी जिनमें से एक फैकल्टी मेंबर है. प्रशासन उसके खिलाफ़ कारवाई करने को राज़ी नहीं था मगर जब हमने बड़े पैमाने पर स्ट्राइक किया तो उसके खिलाफ़ कार्यवाई हुई.” जोइंट सेक्रेटरी ऑफ द स्टुडेंट्स यूनियन, जवाहरलाल नेहरु युनिवर्सिटी, दिल्ली [नवंबर 2003. इण्डिया टूगेदर] यदि आप यौन उत्पीडन का शिकार हुई हैं तो स्टुडेंट्स यूनियन से मदद लेना बढ़िया रास्ता है. आपके अकेले केस लड़ने से बेहतर है कि केस के पिछे किसी समूह का साथ हो इससे ज्याद स्कोप होता है कि आपकी बात सुनी जाये और केस अंत तक पहुंचे. इसके अलावा यूनियन समिति के काम और कॉलेज में यौन उत्पीडन की रोकथाम के लिए जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.औपचारिक तरीके
औपचारिक तरीके वे हैं जिनमें आप यौन उत्पीडन के मामले को लिखित रूप में संस्था के प्रमुख/प्रिंसिपल/यौन उत्पीडन समिति तक ले जाती हैं. इस स्तर पर, आप यह भी तय कर सकती हैं कि केस को पुलिस तक ले जाएँ. याद रखें, यौन उत्पीडन कोग्निजिबल जुर्म है और गैर-ज़मानती है. “यौन उत्पीडन समिति क्या है?” “हम अनहोनी होने का इंतज़ार नहीं करते, हम छात्रों के बीच जागरूकता लाते हैं.” चेयरपर्सन, यौन उत्पीडन समिति, युनिवर्सिटी ऑफ हेदराबाद [द हिंदू, 02/03/2009]- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सभी मालिकों को यह निर्देश है कि वे यौन उत्पीडन के मामलों को देखने के लिए यौन उत्पीडन समिति का गठन करें. इसीके परिणाम स्वरुप यह सेल, यौन उत्पीडन से बचाव और ऐसे केसों की सुनवाई, इसके बारे में जागरूकता, गाइडलाइंस उपलब्ध कराना और कॉलेज स्तर पर यौन उत्पीडन समिति का गठन आदि करती है.
- यौन उत्पीडन सेल का ढांचा एस युनिवर्सिटी से दूसरे का अलग है. उदाहरण के लिए मुम्बई में कॉलेज यौन उत्पीडन समिति और युनिवर्सिटी यौन उत्पीडन समिति है, वहीँ दिल्ली युनिवर्सिटी में तीन टाएर ढांचा है: व्यक्तिगत कॉलेज स्तर पर सेल, युनिवर्सिटी डिपार्टमेंट के क्लस्टर स्तर पर सेल, उनके संस्थानों के लिए सेल जो ऊपर दो तरह की श्रेणी में नहीं आते, और फिर पूरी दिल्ली युनिवर्सिटी के लिए अपेक्स शिकायत समिति.
- शिकायत समिति में पांच सदस्य की टीम होती है, जिसमें 50% महिलाएं होंगीं, थर्ड पार्टी सदस्य के रूप में एक एनजीओ सदस्य होगा और एक सदस्य रिजर्वड श्रेणी से.
- यौन उत्पीडन के अपराधी को देने वाली सज़ा उसके दर्जे के हिसाब से होगी. यदी आरोपी छात्र है तो सज़ा चेतावनी, लिखित माफ़ी, कुछ समय के लिए निलंबित या परीक्षा में बैठने ना देना. यदि उत्पीडक कर्मचारी है तो सज़ा चेतावनी से लेकर प्रमोशन रोकने और सर्विस से निकल देने और जबरन रिटायेरमेंट तक हो सकता है.
- अधिकतर केसों में शिकायतकर्ता द्वारा ही शिकायत दर्ज करना चाहिए. जिसका उत्पीडन हुआ है उसकी सहमति के बिना औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं हो सकता.
- शिकायत लिखित में होना चाहिए और उसपर शिकायतकर्ता का हस्ताक्षर होना चाहिए. आप मौखिक रूप से शिकायत दर्ज करने का भी चुनाव कर सकते हैं, मगर इसे यौन उत्पीडन कमिटी के सदस्य द्वारा फिर लिखित में दिया जायेगा. जबतक आप इसे साइन नहीं करतीं तबतक इसे औपचारिक शिकायत नहीं माना जायेगा. यह डाक्यूमेंट शिकायत रजिस्टर में जाता है जो कि गोपनीय है.
- आप पूरी गोपनीयता के साथ शिकायत दर्ज कर सकती हैं. यह खासतौर पर महत्वपूर्ण है जब आपको लगता है कि कहीं बात पब्लिक ना हो जाए.
- इसके बाद शिकायतकर्ता की बात पांच सदस्य वाले शिकायत कमिटी द्वारा सुनी जाती है और यह निर्णय लिया जाता है कि क्या केस यौन उत्पीडन के अंतर्गत आता है. इसके बाद एक इंक्वायरी रिपोर्ट तैयार की जाती है. और यदि केस को बंद करना हो तो उसके ठोस कारण दिए जाते हैं.
- यदि यौन उत्पीडन कमिटी केस लेने का निर्णय लेती है, तब आरोपी को उसके ऊपर होने वाली इंक्वायरी की खबर दी जाती है. उसे दी गई समय अवधि में अगली मीटिंग/सुनवाई में प्रस्तुत होना होता है. हालांकि यह समय अवधि एक से दूसरी युनिवर्सिटी में फर्क हो सकती हैं.
- इस स्तर पर आकार आपको तय करना है कि आप केस को आगे कैसे ले जायेंगीं. इसका मतलब है कि आप उत्पीडक को केवल चेतावनी देना चाहती हैं या आप चाहती हैं कि कमिटी उसके खिलाफ़ कोई कड़ी कारवाई करे, जैसे कि ट्रान्सफर.
- यौन उत्पीडन कमिटी ही इस बात का निर्णय लेती हैं कि सज़ा की डीग्री क्या होगी जो कई बातों पर निर्भर होती है जैसे मामले की संगीन इंक्वायरी पर, उत्पीडन कितनी बार किया गया उसपर, शिकायतकर्ता पर और संस्थान पर पड़ने वाले असर पर और दोनों के दर्जे के आधार पर. जैसे किसी छात्र का अन्य छात्र द्वारा कमेंट मरने से टीचिंग स्टाफ के सदस्य द्वारा पीछा करना ज्यादा संगीन मामला है.
- अन्य विशिष्ट बॉडी को सम्बर्क करें जैसे यौन उत्पीडन के खिलाफ़ जेंडर सवेदनशीलता कमिटी, जवाहरलाल नेहरु युनिवर्सिटी या यौन उत्पीडन के खिलाफ़ फोरम, दिल्ली आधारित.
- डिपार्टमेंट हेड/प्रिंसिपल/अन्य लेक्चरर
- अपने साथियों से मदद लें और सहायता के लिए जोइंट शिकायत दें
- यदि वहाँ यूनियन है तो उसे संपर्क करें
- कॉलेज में सुनवाई के प्रावधान हों इसके लिए लॉबी करें
- अपनी शिकायत लेकर युनिवर्सिटी स्तर के यौन उत्पीडन कमिटी के पास जाएँ.
जब कोई लेक्चरर अपने सहकर्मी/प्रिंसिपल/नॉन-टीचिंग स्टाफ द्वारा और एक छात्र लेक्चरर/प्रिंसिपल/नॉन-टीचिंग स्टाफ द्वारा यौन उत्पीडन का शिकार होता है और आपके कॉलेज में शिकायत सेल भी नहीं है, यह बहुत ही गंभीर मसला है क्योंकि यहाँ अधिकारी शामिल है. आपको नीचे दिए गए विकल्पों में से एक तो चुनना ही चाहिए.
- युनिवर्सिटी स्तर पर यौन उत्पीडन कमिटी से संपर्क करें
- पुलिस के पास जाएँ
- अन्य सहकर्मियों से सहयोग लें
- प्रशासन/कार्यकारिणी बॉडी के सदस्य/बोर्ड ऑफ ट्रस्टी से संपर्क करें
- कॉलेज के स्तर पर यौन उत्पीडन कमिटी बनाने के लिए अन्य सहकर्मियों से मिलकर लॉबी करें
“मेरे शिकायत पत्र/फॉर्म में क्या होना चाहिए”
- आपके औपचारिक शिकायत पत्र में शिकायत की तारीख, आपका नाम और दर्जा (आप जिस डिपार्टमेंट की है). इसमें स्पष्ट लिखा होना चाहिए कि यौन उत्पीडन की घटना कब हुई, उत्पीडक की पहचान क्या थी, उसका दर्जा और डिपार्टमेंट, और किस परिस्थिति में यौन उत्पीडन की घटना हुई थी. यह भी दर्ज करें कि घटना का आपके ऊपर क्या असर हुआ और आपने क्या प्रतिक्रिया दी.
- पत्र औपचरिक तरह का होना चाहिए और भावनात्मक नहीं होना चाहिए
- यौन उत्पीडन के मुद्दे को ही केन्द्र में रखें. आपको उत्पीडक के स्वभाव का विवरण देने की ज़रूरत नहीं है, केवल घटना पर ही फोकस रखें.
- यदि उत्पीडन एक से ज्यादा बार हुआ है तो सभी घटना की तारीख, स्थान, किस तरह से आपका उत्पीडन हुआ और सन्दर्भ क्या था
- आप जिस सदमें से गुज़रीं उसका बयान कीजिये.
- यदि आप अपने केस की गोपनीयता बनाये रखना चाहती हैं तो उसका उल्लेख करें.
- यदि आप उत्पीडक के खिलाफ़ औपचारिक/क़ानूनी कदम लेना चाहती हैं तो इसे लिखें.
“क्या पुलिस के पास जाना अच्छा उपाय है?”
हाँ! यदि आपको लगता है कि कॉलेज के पास आपकी शिकायत को देखने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, तब आपको पुलिस के पास जाना चाहिए और एफ आई आर दर्ज करवानी चाहिए!
अधिकतर युनिवर्सिटी और कॉलेज के अंदर या आसपास पुलिस स्टेशन होता है. कहीं कहीं पर तो मोबाईल पुलिस स्टेशन होते हैं जो कई कॉलेजों में काम करते हैं. कई लोग पुलिस के पास जाने से झिझकते हैं, सोचते हैं कि इससे मामला और उलझ जायेगा. मगर याद रखें, विरोध ना करने से आप आरोपी को आज़ाद जाने देती हैं.
क्रिमिनल प्रावधान के बारे में और जानने के लिए, कि एफ आई आर कैसे दर्ज होता है, होम में जहाँ इंडियन पिनल कोड के तहत सेक्शन जो यौन उत्पीडन के लिए है और जहाँ यौन उत्पीडन पर अन्य कानून दिए गए हैं, वहाँ पर पुलिस के पास जाएँ सेक्शन में जाएँ
सड़कों पर होने वाला यौन उत्पीडन
भीड़ से निकल कर आपके शारीर को छूता हुआ हाथ, साईकिल सवार द्वारा आपके दुपट्टे को खींचना, ‘लड़कों’ के समूह द्वारा आप पर टिप्पणी करना, बस में आपके कपड़ों को चीरते हुए घूरना, ऑटो ड्राइवर का अपने शीशे को ठीक करने के बहाने आपको देखना या किसी आदमी का आपको जानबूझकर धक्का मारना. यौन उत्पीडन जिसे भारत में ईव-टीजिंग भी कहते हैं, सड़कों पर यह बहुत ही कॉमन और परेशान करने वाला है.
यह क्या है?
संछेप में, यौन उत्पीडन अनचाहा बर्ताव है जिसका कई रूप है जैसे सिटी बजाना आदि. इसके परिभाषा में मुख्य समस्या है कि इसका जुडाव ‘ईव-टीजिंग’ के साथ है.
‘ईव-टीजिंग’ का मतलब है बगैर किसी नुकसान के मज़ा, जिसे औरतें भी चाहती हैं या पसंद करती हैं. ‘ईव’ का मतलब है महिला जो कामुक है चंचल है, जो लोगों का ध्यान आकर्षित करती है और उसका जो परिणाम होता है उसके लिए वह खुद ही ज़िम्मेदार है. ‘ईव-टीजिंग’ हल्केफुल्के मजाक और उन परिस्थितियों को इशारा करता है जो हिंदी फिल्मों और गानों में दिखाया जाता है जहाँ हीरोइनें हीरों के अनचाहे आकर्षण का विरोध सिर्फ इसलिए करती हैं कि बाद में उन्हें उनके प्यार में पड़ना है.
हालांकि, यह उतना हानिकारक नहीं है.महिलाओं के लिए यह सदमे भरा अनुभव होता है. ईव-टीजिंग भ्रामक होता है – यह यौन उत्पीडन की घटना में निहित सत्ता के खेल को छिपा देता है. यह इंडियन पिनल कोड के तहत ना केवल सिर्फ एक अपराध है बल्कि यह आज़ादी से घूमने फिरने और आत्मसम्मान के साथ जीने का संवैधानिक अधिकार का भी उलंघन भी है.
मर्द क्यों उत्पीडन करते हैं? अध्यन बताते हैं कि मर्द इसलिए उत्पीडन करते हैं क्योंकि महिलाएं आसान शिकार होती हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि वे भीड़ में आसानी से बचकर निकल जायेंगें. यह एक औरतों को बताने का एक तरीका है कि सड़क पर मर्दों का एकाधिकार है. तुम्हारी जगह घर के अंदर है, यदि तुम बाहर सड़क पे निकलती हो तो तुम शिकार बन सकती हो. यह महिलाओं और उनकी घूमने फिरने की आज़ादी पर पितृसत्तात्मक नियंत्रण है. इसका पहनावे और आचार-व्यवहार से कुछ लेना देना नहीं है.
सड़कों/सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले यौनिक उत्पीडन के प्रकार
“यहाँ दो साल रहने के बाद, सड़कों पर मर्दों द्वारा लगातार मौखिक और शारीरिक यौन उत्पीडन झेलने के बाद, मैं खुशी से यह जगह छोड़ सकती हूँ. मैं गोरी (विदेशी) महिला हूँ जिसकी वजह से मैं इसका शिकार बन रही हूँ.” एक ब्रिटिश महिला जो यहाँ संस्कृत पढ़ने के लिए आई थी. [द हिंदू, 11/09/2005]
“चलती गाड़ी से उन्होंने मेरी शर्ट का कोलर खिंचा और मुझे कार से बाहर खींचने की कोशिश की. मैं गाड़ी चलाती रही और अपने मोबाईल से 100 नंबर डायल किया.” एक युवा महिला ड्राइवर, जिसे चार शराबी आदमियों ने दिल्ली पुलिस हेडक्वार्टर के पास ही उसकी कार से उसे लगभग खींच लिया था. [टाइम्स ऑफ इंडिया, 25/08/2002]
ज्यादातर महिलाओं को कई तरीकों से उत्पीडन सहना पड़ता है.
नीचे दिए गाये कुछ ऐसे ही उत्पीडन के तरीके हैं :
- घूरना
- अश्लील इशारे करना
- अपना गुप्तांग दिखाना
- आपको घूरते हुए अपने गुप्तांग को खुजाना
- Scratching groin while staring at you
- छूना
- ऊपर से नीचे तक आपको जांचना
- चिकोटी काटना
- आँख मारना
- आपको महसूस करना
- गाने गाना
- आपको अश्लील नामों से बुलाना जैसे ‘सेक्सी’, ‘रानी’, ‘मिर्ची’, ‘पटाखा’, ‘बम’, ‘आइटम’, गुलाब जामुन’, ‘फुलझरी’, ‘लड्डू’ आदि
- आपके शारीर को छूते हुए निकल जाना
- आपके बहुत पास खड़े होना
- गाड़ी से आपका पीछा करना
- आपकी गाड़ी के पीछे जानबूझकर हार्न मारना
- चुम्बन की आवाज़ निकालना
- आपके सीने को घूरना
- व्यक्तिगत सवाल पूछना
- चुम्बन लेना या चुम्बन की मांग करना
- आपका पीछा करना
- अपने शरीर के अंगों को आपसे रगड़ना
- आपके सीने पर हाथ लगाना
- आपको धक्का मारना
आपको कैसा महसूस होता है जब आपके साथ उत्पीडन होता है? शुरुआत में शाक लगने के बाद तरह तरह की भावनाएं मन में आती हैं-डर, भय, गुस्सा, भ्रमित और सबसे ज्यादा असहायपन कि उत्पीडक बचकर निकल गया.
और फिर भी यहाँ महिलाएं हैं जो इसे यौन उत्पीडन कहना ही नहीं चाहती. हम बस साधारण तरीके से उत्पीडक की हरकतों के लिए बहाना ढूँढ लेते हैं. ‘लड़के तो ऐसे होंगे ही’, या ‘ आदमी आखिर आदमी ही होते हैं’ या ‘ये सारी बातें तो होती रहती हैं’. मगर यौन उत्पीडन का मतलब और इसकी गंभीरता उत्पीडक की मंशा से नहीं बल्कि उसकी हरकतों पर निर्भर करता है. कोई भी हरकत – बोलकर, अनबोला, शारीरिक, गैर शारीरिक, छिपा हुआ, खुलकर – यदि आपको उत्पीडन का भाव देता है तो वह यौन उत्पीडन है.
संभावित कदम
“ मैं हमेशा अपने आसपास का माहौल चेक कर लेती हूँ मगर कई बार ऐसा समय होता है जब आप ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं.” सीनियर वकील, दिल्ली, इंडिया टुडे, 20/10/2008
आप भीड़भरी बस में किनारे की सीट पर बैठी हैं और आपके पीछे खड़ा आदमी आपके शारीर को छूता हुआ अपनी देह रगड़ रहा है. आप क्या करेंगीं? ज्यदातर महिलाओं का कहना होगा कि वहाँ से हट जायेंगीं और इसे नज़रंदाज़ करेंगीं. मगर प्रतिक्रिया दिखाने का सिर्फ यही तरीका तो नहीं.
व्यक्तिगत सुरक्षा
“मैं देर तक बाहर रहती हूँ, काम की वजह से या लोगों से मिलने जुलने की वजह से. मैं मुंबई में लोकल ट्रेन से देर तक करीब 1 बजे तक बाहर रहती हूँ. और मैंने कभी भी असुरक्षा महसूस नहीं की. दिल्ली में ऐसा नहीं है, जहाँ जब भी मैंने पब्लिक जगह में पैर निकला तो पाया कि लोग मुझे घूर रहे हैं.” एक महिला ट्रावेलर, दिल्ली, द वीक, 19/10/2008
“हालांकि शारीरिक घाव भर जाता है, मगर मानसिक सदमे से बाहर आना मुश्किल था......हो सकता है कि मुंबई को सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती हो मगर यह मेरे लिए सच नहीं हुआ” 28 वर्षीय टीवी अधिकारी [इण्डिया टुडे, 20/10/2008]
सुरक्षा की भावना व्यक्ति के निजी अनुभव, पलेबढे होने और किसी निश्चित जगह पर एक्सपोजर पर निर्भर करता है. कोई पब्लिक जगह जो एक महिला के लिए सुरक्षित है वही दूसरे के लिए असुरक्षित हो सकती है. यह ज़रुरी है कि आप अपने तरीके से खतरे का सामना करने के उपाय तलाशें. आपकी अपनी चेतना और इन्द्रियां स्थिति को परखने के लिए सहायक हो सकती हैं.
- जब यह सार्वजनिक जगहों में होता है, आपका पहला मकसद होना चाहिए कि आप खुद को किसी खतरे की स्तिथि से दूर रखें.
- आपको चाकू या मिर्च पाउडर रखने की ज़रूरत नहीं है. बल्कि ऐसे सामान रखें जिसकी साधारण तौर पर ज़रूरत होती हैं जैसे पेन, डियोद्रेंट, सेफ्टी पिन, हेयर पिन, चाभी, किताबें, छाता, बेग, अपनी कोहिनी का इस्तेमाल आदि आपके हथियार हो सकते हैं.
- मगर शारीरिक जोर का इस्तेमाल आखिरी विकल्प के तौर पर करें.
- जब बाहर जाएँ तो सावधान रहें. अपने वातावरण के प्रति सावधान रहें, खासतौर से जब आप नए शहर में जा रही हों. अक्सर, आपकी फर्क पहचान आपके कपड़ों, बोली से समझ आ जाती है और हो सकता है कोई इसका फ़ायदा उठाये.
- जब सड़क पर चल रही हों तो ट्राफिक के उलटी तरफ चलें. इससे आपको मदद मिलेगी कि आप किसी कार/साईकिल/मोटरसाईकिल से होने वाले उत्पीडन के खतरे से बच पाएंगीं.
- यदि आप ऐसी स्थिति में फंस गई हैं जहाँ उत्पीडक हिंसक है, तो आप मीठी बातें करके या झूठे वादे करके उस स्तिथि से निकलने की कोशिश करें.
- जैसे ही उत्पीडक आपको परेशान करे आप विरोध करें. ज्यादातर समय उत्पीडक यह उम्मीद नहीं करता कि आप बोल पड़ेंगीं. वह आपको इसलिए निशाना बना रहा था क्योंकि उसने सोचा कि आप उससे डर जायेंगीं या शर्म के मारे कुछ नहीं कहेंगीं.
- यदि आप टेक्सी या ऑटो रिक्शा में हैं, चुपचाप नंबर प्लेट से नंबर लिख लें. यदि आप ऑफिस की टेक्सी में हों और देर रात जा रही हों तो भी ऐसा करें.
- अपने दोस्त/परिवार को बता दें कि आप कहाँ जा रही हैं. खासतौर से जब आप नए शहर में जा रही हों. उदाहरण के लिए, जैसे आप काम से घर लौट रही हों तो परिवार को खबर कर दें.
- इमरजेंसी संपर्क नंबर अपने साथ ही रखें. इस नंबर को आप स्पीड डायल में सुरक्षित करके रखें. इस तरह आप ज़रूरत के समय तुरंत इसका इस्तेमाल कर सकती हैं और घटना का गवाह भी तैयार होगा.
- जब ही आप डरी हुई या घबराहट महसूस करें तो तुरंत उसे कहें. यह परिस्थिति को संभल सकता है क्योंकि उत्पीडक आपसे ये उम्मीद नहीं करता कि आप विरोध में बोल पड़ेंगीं.
उत्पीडक का सामना करें
“ जब बस में कोई आदमी आपको छू रहा हो और धक्का दे रहा हो तो क्या आप बस से कूद जायेंगीं और एफ आई आर दर्ज करायेंगीं? हमने अपना ही तरीका निकला है जो एफ आई आर दर्ज कराने से ज्यादा असरदार है – जैसे, थप्पड़ मारना या उत्पीडक को सबसे सामने चिल्ला कर शर्मिंदा करना.”
– वोमेन फ़ीचर सर्विस, 23/05/2009
नहीं – आप पुलिस के पास नहीं जा सकतीं कि कोई राह चलता आपको गन्दी नज़र से देख रहा है या जानबूझकर आपको धक्का मारकर निकल गया हो या साधारण तरह से ही देख रहा हो. आप क्या करेंगीं? उसका सामना करना ज्यादा असरकारक होगा. उसकी हरकत को नाम लेकर टोक कर आप उसे चकित कर दें और पब्लिक में शर्मिंदा करें.
भारतीय महिलाएं सदियों से यौन उत्पीडन को चुप्पी के साथ सहने के लिए ट्रेंड की गई हैं. किशोरियों को उनकी माएं सलाह देती हैं – “ जब तुम बाहर सड़क पर हो तो कोई भी अश्लील नज़र और टिप्पणी को अनदेखा करो. अपना सम्मान बनाये रखो.” लेकिन आपना विरोध जताने में अपने सम्मान की रक्षा ज्यादा है. किसी को भी यह अधिकार नहीं कि आपको यौनिक रूप से उत्पीडित करे. आप न केवल खुद पर होने वाले उत्पीडन को रोकती हैं बल्कि उत्पीडक को अगली दफा किसी के साथ उत्पीडन करने से पहले सोचने पर भी मजबूर करती हैं. कभी कभी उत्पीडक आपके कुछ कहने करने के पहले ही झट से गायब हो जाता है. यदि उत्पीडक बच निकलता है तो खुद को ना कोसें. याद रखें, उसने पहले से ही बच निकलने के लिए अपना रास्ता सोच रखा होता है. आपका गुस्सा जायज है, मगर अपराधबोध नहीं. यह आपके साथ हुआ इसमें आपकी कोई गल्ती नहीं है.
उत्पीडक का प्रोफाइल
ज्यादातर उत्पीडक अपना शिकार सावधानी से चुनते हैं. उसका दिमाग कैसे काम करता है यह जनना आपके लिए महत्वपूर्ण है ताकि आप उससे अच्छी तरह सामना कर सकें.
उत्पीडक अधिकतर सार्वजनिक जगहों पर हमला करता है, यदि......
- जब उन्हें लगता है कि शिकार आसानी से हाथ लग जाएगा (जो कि, असावधान, शर्मीली या डरी हुई)
- उन्हें लगता है कि आप बाहर की हो, कोई टूरिस्ट या यदि आप उस जगह में नई हो.
- उन्हें लगता है कि वे आसानी से बच निकलेंगें.
- उन्हें लगता है आप कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगीं और चुपचाप सहेंगी.
- उन्हें लगता है कि वे आपको डरा धमका लेंगें
- वे भीड़भाड़ वाली जगह का इस्तेमाल आसानी से बच निकलने के लिए करते हैं या अपने फायदे के लिए करते हैं.
उत्पीडक से सामना करने के लिए ‘क्या करना चाहिए’ और ‘क्या नहीं करना चाहिए’ इसके बारे में जानें
क्या करना चाहिए
- अपने रवैये को सीधा और स्पष्ट रखें. उसने क्या किया वही कहें और कैसे ये आपके लिए सहनीय नहीं है. अगर ज़रूरत हो तो पहले से ही अभ्यास करें, “ तुमने अभी...........यह यौन उत्पीडन है. औरतों को उत्पीडित करना बंद करों!”
- यदि आप भीड़ भरी बस में या टेक्सी में हों, उसे कहिये कि वे वहाँ से हटे. आप ऐसे कहें कि उसे ये सन्देश पहुंचे कि उसका इस तरह से खड़ा होना आपको पसंद नहीं है. उसे कहिये कि वे हट जाये खासतौर पर जब जगह हो.
- उसकी हरकत को सबके सामने लाएं. उसकी हरकत को जैसे हुई वैसे ही बयान करें. जैसे, ‘घूरना बंद करो. क्या पहले कोई लड़की नहीं देखी?” जोर से और स्पष्ट रूप से कहें.
- उसे शर्मिंदा करें
- आपनी आवाज़ को गंभीर रखें
- सामना करते समय अपने शारीर की भाषा पर नियंत्रण रखें. मजबूत रहें और उसकी आँखों में सीधे देखें. बात करते समय सीधी खड़ी रहें और अपनी आवाज़ स्थिर रखें.
- याद रखें, मजाक करने की कला के यौन उत्पीडन से कुछ लेना देना नहीं है. उत्पीडक को बताएं की वो बहुत बेकार है, यदि उसे लगता है कि वह आपकी कीमत पर मजा कर सकता है.
- याद रखें, कि यह आपके नियंत्रण में है कि आप बातचीत कब खतम करें. आपको लागतात उससे बहस करते रहने की ज़रूरत नहीं है और ना ही उसके स्पष्टीकरण को सुनाने की ज़रूरत है. यदि वह बहस करता है तो उसकी बात बीच में ही काट कर बातचीत को खतम कर दें.
क्या ना करें
- बात करते समय लडखडाना, हंसना, मुस्कुराना और रोना
- उसके ऊपर कुछ फेंक कर ना मारें. उससे बात करते समय ज्यादा भावुक ना हों
- उससे सामना करते समय ज़रूरत से ज्यादा नम्र, कमजोर ना हों
- उत्पीडक के हरकत के लिए कोई बहाना ना दें. या उसका बचाव करें. उसके हरकत से यदि आपको आपत्ति हुई है तो कहें. उसके बुरे बर्ताव को यह कहकर अनदेखा ना करें कि वो आपको चाहता है, या उसका स्वभाव ही ऐसा है और वह खुद की मादद नहीं कर सकता. इसे
- अनदेखा ना करें कि आपके साथ ये हुआ है.
- उसके बहाने और बहस की प्रतिक्रिया ना दें. यदि ज़रूरत हो तो उसे टोक दें.
- यदि ज़रूरत हो तो शारीरिक प्रतिक्रिया देने से ना हिचकिचाएं
- उत्पीडक के हरकत के लिए खुद को दोषी ना ठहराएं
- बातचीत को ज्यादा ना खींचें. इसे जल्दी और सटीक रखें
- यह ना सोचें कि यौन उत्पीडन सहने में आप अकेली हैं. औरों को भी शामिल करें
अपना कॉमन सेन्स इस्तेमाल करें
यदि ज़रूरत हो तो भीड़ इकठ्ठा करें. अपने आसपास लोगों से मदद लें, खासतौर पर जब आपकी सुरक्षा खतरे में हो. हरकत को नाम देने से ना हिचकिचाएं.
जोर से चिल्लाकर बताएं कि उत्पीडक ने क्या किया अरे यह यौन उत्पीडन है. उत्पीडक यह उम्मीद नहीं करता कि आप उसकी हरकत को सबके सामने ले आयेंगीं. भीड़ इकट्ठा करने से न केवल उसे शर्मिंदगी होगी बल्कि उसका भाग निकलना और मुश्किल हो जायेगा. जैसे कि भीड़ का फ़ायदा उठाकर उत्पीडक अपनी हरकत करता है उसी तरह आप भी भीड़ का फ़ायदा उठाकर अपनी सुरक्षा का इंतजाम करें.
जब भीड़ मदद करने से मना कर दे
हलांकि, किसी परिस्थिति में आप किसी की मदद चाहती हैं और लोग कुछ मदद नहीं करते, तो भीड़ में कुछ खास लोगों को मदद करने के लिए कहें. जोर से कहें ‘सर/मैडम मुझे आपके मदद की ज़रूरत है यह आदमी मुझे परेशान कर रहा है’.
कभी कभी लोग कन्फ्यूजड हो जाते हैं जब किसी परिस्थिति में उनके ध्यान को आकर्षित किया जाता है. सहायता के लिए बुलाने में स्पष्ट रखें. जिस व्यक्ति की मदद चाहिए उसे सीधे पुकारें.
यदि तब भी आपके आसपास लोग मदद के लिए नहीं आते, तो समझ जाएँ कि वे किसी मुसीबत में खुद को नहीं डालना चाहते. हेल्पलाईन पर फोन करें (मुंबई में हैं तो 103 डायल करें और दिल्ली में तो 1091 डायल करें) या फिर 100 नंबर पर पुलिस को.
अपनी खुद की रणनीति बनायें
यहाँ पर कुछ सच्ची घटनाएँ दी गई हैं कि कैसे महिलाएं यौन उत्पीडन से सामना करने के लिए रणनीति बनाती हैं. आपकी सुझबुझ आपको आने वाले नुकसान से बचाती है. नंदिनी, दिल्ली के एक कॉलेज की छात्रा ने एक दिन घर जाते नोटिस किया कि कोई आदमी बाईक पर उसे देख रहा है. उसकी मंशा को समझते हुए उसने रोड़ क्रास कर उसे नज़रंदाज़ करने के लिए जो पहली बस आई उसे पकड़ ली. वह जैसे ही बस से उतरी उसे आभास हुआ कि वह आदमी पीछा करते करते वहाँ तक पहुँच गया. उस आदमी ने उससे चुम्बन की मांग की. नंदिनी ने दर्शाया कि वह भी उससे आकर्षित हो गई है और उससे अगले दिन मिलने के लिए सहमत हो गई.....कहने के ज़रूरत नहीं कि वह उस आदमी से मिलने अगले दिन नहीं गई. [‘गर्ल्स फाइट बैक’ जागोरी द्वारा] यह स्मार्ट रणनीतियाँ कई तरह की हो सकती हैं उत्पीडक से मीठी बात करना, मोलतोल करना, झूठा वादा करना, वही कहना जो वह सुनना चाहता है, अपने बारे में गलत जानकारी देना. यह सब करने का मतलब है कि उत्पीडक ये सब उम्मीद ना करे, और आप परिस्थिति से सुरक्षित बचकर बाहर निकल आयें. यौन उत्पीडन से बच निकलना इससे सामना करने का बेहतर उपाय है. आपनी चेतना का इस्तेमाल परिस्थिति को समझने के लिए करें.सुरक्षा के कुछ उपाय
एक औरत को एक आदमी चलती बस में उत्पीडित कर रहा था, जो अपने गुप्तांग को निकल कर दिखा रहा था. यह देखकर घबराने और शर्माने की बजाय वह हंसी और जोर से उसकी तरफ इशरा करते हुए बोली कि ‘ओह ये कितना छोटा है!’ वह आदमी इतना शर्मिंदा हुआ कि बस से तुरंत ही उतर गया! [सच्ची घटनाएँ, ‘गर्ल्स फाइट बैक से, जागोरी द्वारा]
- डर की किसी भी स्थिति से खुद को तुरंत हटा लें
- यदि आप पाती हैं कि कोई अजनबी आपको घूर रहा है, तो उसे तीन सेकेण्ड के लिए देखें (उससे ज्यादा नहीं) आप उसे पूरा ऊपर से नीचे देखें फिर अपना चेहरा घुमा लें. यह साधारण सी प्रक्रिया ये कहती है कि आप उस आदमी में कोई रूचि नहीं रखती हैं.
- यदि आपको लगता है कि कोई कार आपका पीछा कर रही है, तो सड़क क्रास करके दूसरी तरफ चली आयें और उलटी दिशा में चलने लगें.
- सड़क पर चलते समय ट्राफिक की उलटी दिशा में चलें.
- जो महिलाएं पालतू कुत्तों के साथ घुमती हैं उनके साथ कम उत्पीडन होता है
- किसी अजनबी (लोकल ट्रांसपोर्ट में सफर करते हुए सहयात्री से) से बात करते हुए आपना असली नाम और अपने बारे में सही जानकारी ना दें. इसका खास पालन करना चाहिए खासतौर से जब आप किसी नए शहर में यात्रा कर रही हों. जब आप नहीं चाहतीं तब आपको बात नहीं करनी चाहिए.
- जब यात्रा करनी हैं तो टेक्सी और ऑटो रिक्शा लेने की तुलना में बस और ट्रेन से सफर करना ज्यादा सुरक्षित है.
- यदि आप किसी आदमी से साथ लिफ्ट में जाने से असहज महसूस करती हैं तो ना जाएँ.
- यदि ज़रूरत हो तो शारीरिक बल का प्रयोग करने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करें. आँखें, गुप्तांग और गला कमजोर जगहें होती हैं. सरल उपाय जैसे उत्पीडक की आँखों में धूल फेंक देना ही आपको वहाँ से बच निकलने के लिए मौका दे सकता है.
- अपने आसपास के वातावरण के प्रति सावधान रहें – आवाज़, लोग आदि. उदाहरण के लिए कानों में इयर प्लग लगाकर चलने से आपको पता नहीं चल पायेगा यदि कोई आपके पीछे से हमला करता है.
बाँटना (शेयरिंग)
“ लोग दौड़ते हुए आकार मेरे पीछे या छाती पकड़ लेते हैं और या जानबूझकर मुझे धक्का मारकर निकल जाते हैं. यह बहुत जल्दी होता है. मैं आपने बॉय फ्रेंड के साथ हूँ तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता. इसके बाद मुझे सदमा लगा और तनाव हुआ. बहुत गुस्सा और हीन महसूस हुआ. इस बारे में बात करने के किये कोई नहीं है.” लौरा नयूहुस, [एस ए डब्ल्यू एफ वेबसाइट, 17/7/2006]
जब आपका यौन उत्पीडन हुआ हो, यह महत्वपूर्ण है कि आप किसी भरोसेमंद दोस्त या किसी परिवार के सदस्य से बताएं. इससे न केवल गवाह तैयार करने में मदद मिलेगी बल्कि दोस्त और परिवार के सदस्य आपको मदद करने के महत्वपूर्ण स्त्रोत बन सकते हैं. रिसर्च अध्ययन के अनुसार जिन महिलाओं ने तनाव और सदमे को किसी से बताया वे जल्दी इस तरह के हादसे से उबर पाती हैं.
पुलिस के पास जाना
“यह कानून कमजोर है, इसे कड़े क़ानूनी अपराध की तरह नहीं देखा जाता है. और यौन उत्पीडन के केसों को फोलोअप करने में प्रशाशिनिक रुकावटें भी आती हैं. शिकायत दर्ज करने के कुछ महीनों के बाद महिलाएं हताश हो जाती हैं और उन्हें लगने लगता है कि मौजूदा कानून के अंदर कोई समाधान नहीं है.”जसविन आलूवालिया. आई एफ ई एस, जयपुर, [द हिंदू, 11/09/2005]
पुलिस के पास जाने में अपनी ही एक चुनौती है जिसके लिए आपको मानसिक रूप से तैयार होना चाहिए. पुलिस की लोगों के प्रति सवेंदनशीलता जानीपहचानी है. फिर भी यौन उत्पीडन के केस की रिपोर्ट करना ज़रुरी है. आपको आपके क़ानूनी अधिकार के बारे में पता होना चाहिए. आपको यह जानना ज़रुरी है कि कानून के तहत यौन उत्पीडन क्या है और यह किस सेक्शन के अंतर्गत आता है. आपको जानना है कि एफ आई आर क्या होती है. यदि ज़रूरत हो तो अपने साथ दोस्त या परिवार के सदस्य को पुलिस स्टेशन ले जाएँ.पीछा करके किसी का उत्पीडन करना
“कुछ दिन पहले ही आनंदिता ने मुझे आकर कहा था कि मैं बिल्डिंग के गार्ड को यह हिदायत दूँ कि वह लोकालिटी में आनेजाने वाले लोगों को जांच लिया करे.”
– बिल्डिंग सेक्रेटरी के साथ इंटरव्यू [इन्डियन एक्सप्रेस 18/10/2008]
फ्लिमों में पीछा करना हो सकता है कि रोमांचक हो, मगर असल जिंदगी में जिसके साथ होता है उससे पूछिए कि यह कितना भयानक अनुभव हो सकता है, मानसिक तकलीफ और डर से भरा हुआ अनुभव. किसी का पीछा करना ना केवल उसकी प्रिवेसी का उलंघन है बल्कि लगातार एक भय रहता है कि कब पीछा करने वाला सामने आ जायेगा और ना जाने कैसी हरकत करेगा.
पीछा करना क्या है?
पीछा करने का मतलब है ऐसा बर्ताव जिससे किसी महिला का पीछा कर उससे संपर्क साधने की कोशिश किया जाये, उसके बारे में पूछताछ की जाये और उसके आने जाने की खबर रखी जाए. इसी तरह की हरकत यदि ओनलाईन या इंटरनेट से होती है तो इसे साईबर-स्टाकिंग (पीछा करना) कहते हैं.
“ उसने लड़की को फ़ोर्स किया कि वह घंटों तक बात करे. यदि कोई लड़की मना करे तो वह गुस्सा हो जाता और गन्दी गन्दी बात करता. उसने अपने पड़ोसियों को भी बुला लिया और लड़की के बारे में अश्लील बातें करता. ऐसे फोन पर वह लाखों खर्च करता.” अडिशनल सीपी, क्राइम, स्टाकर पर जो सोशल नेटवर्किंग साईट से महिलाओं के नंबर लेता था और उन्हें परेशान करता था. [23/12/2007, इंडियन एक्सप्रेस]
कैसे पता लगाएं कि आपका पीछा किया जा रहा है?
अधिकतर लोग जान जाते हैं जब ऐसा होता है, लेकिन या तो उन्हें पता नहीं होता कि इसे क्या कहते हैं इसलिए गंभीरता से नहीं लेते या फिर सबके सामने लेने में झिझकते हैं. यदि आपको लगता है कि आपका पीछा किया जा रहा है तो इसे गंभीरता से लें. आपको पता होना चाहिए कि यह पीछा करना है जब:
- जब कोई व्यक्ति आपका पीछा करता और आपसे संपर्क करने की कोशिश करता है. और आपको कुछ ठीक नहीं लगता या इससे डर लगता है.
- आपको महसूस होता है कि वह आपसे ईमेल/चिठ्ठी/फोन/मैसेज के जरिये संपर्क करने की कोशिश कर रहा है
- वह आपसे बार बार मिलने की कोशिश करता है और आप इससे सहज नहीं हैं
- इस व्यक्ति की हरकतों से आपको भय लगता है या डर होता है कि वह आपको शारीरिक रूप से चोट पहुंचा सकता है.
- उसके मैसेज अश्लील और गंदे होते हैं
- आपकी अनुमति के बिना उसने आपके परिवार और काम की जगह पर लोगों से बात करने की कोशिश की है.
- यह सब कुछ समय यानि कुछ हफ़्तों या महीनों से हो रहा है
यदि इनमें से दो या इससे ज्यादा बाते सही है तो सावधान हो जाएँ आपका पीछा किया जा रहा है. आपको इसके लिए कुछ करने की ज़रूरत है. ठोस कदम उठायें. इसे नज़रंदाज़ न करें!
साधारण सवाल और विश्वास: पीछा करना
स्टाकिंग (पीछा करना) क्या नहीं है?
स्टाकिंग का मुख्य चरित्र है कि हो सकता है कि स्टाकर (पीछा करने वाला) आपको किसी और तरह के अपराध का डर दिखाए या ना भी दिखाए. फिर भी इसे अन्य तरह के अपराधों से अलग करने की ज़रूरत है, हालांकि स्टाकिंग में कुछ अपराध भी शामिल हो सकते हैं. मगर वह फिर पूरी तरह से स्टाकिंग नहीं है.- हिंसक व्यवहार जैसे मारना, परेशान करना, अश्लील चित्र दिखाना, इन सबके लिए अलग चार्ज है.
- स्पामिंग स्टाकिंग नहीं है. स्पामर्स आपके एक्टिव ईमेल के पीछे होते हैं ताकि वे विज्ञापन के लिए इसे इस्तेमाल कर पायें. वे आपके अन्य व्यक्तिगत जानकारी में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं.
- एक बार घूरना या अश्लील टिप्पणी करना स्टाकिंग नहीं है. ये तो बार बार होने वाली हरकत है जिसके जरिये कुछ समय में संपर्क साधने की कोशिश की जाती है.
इस फर्क को जानते हुए यह महत्वपूर्ण है कि आप स्टाकिंग के केस को गंभीरता से लें. क्योंकि हर केस में उसके और गंभीर रूप ले लेने की क्षमता होती है.
क्या स्टाकिंग (पीछा करना) भारत में होता है?
हाँ! भारत में यह बहुत कॉमन है और ऐसा नहीं कि यह किन्हीं खास लोगों के साथ होता है. यह किसी के भी साथ हो सकता है. हालांकि स्टाकिंग का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, मगर ये होता है, भले ही पीड़िता महिला की जो भी पृष्ठभूमि हो – वर्ग, उम्र, ग्रामीण या शहरी इलाके या सामाजिक स्तर.
क्या स्टाकिंग सीरियस है?
हाँ! स्टाकिंग एक गंभीर अपराध है. आपको फूल भेजना या देखना अपने आप में खतरनाक नहीं है, लेकिन जब आप इस सबसे भयभीत या दबाव महसूस करती हैं तो आपको इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए. पीछा करने वाला आपको ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. इसके आलावा, स्टाकर समय के साथ ज्यादा हिंसक हो सकता है, और खासतौर पर तब जब उसे रिजेक्ट किया गया हो. स्टाकिंग अक्सर किसी गंभीर अपराध की शुरुआत हो सकती है जैसे बलात्कार, यौन उत्पीडन करना, शारीरिक रूप से चोट पहुँचाना या फिर क़त्ल जैसे अपराध.
क्या यह आदमियों के साथ भी हो सकता है?
हाँ! यह आदमियों के साथ भी हो सकता है, मगर देखा गया है कि महिलाएं इसकी ज्यादा शिकार होती हैं. इस वेबसाइट की ज़रूरत के लिए हम मानकर चलते हैं कि इसकी शिकार महिला ही होगी.
क्या महिलाएं भी स्टाकर हो सकती हैं?
हाँ! हो सकता है कि किसी छोटे लड़के के पीछे महिला स्टाकर हो. मगर ज्यादातर मर्द ही स्टाकर होते हैं. इस वेबसाइट की ज़रूरत के लिए, हम मानकर चलते हैं कि स्टाकर मर्द होते हैं.
स्टाकिंग क्यों होती है?
“स्टाकरों के लिए यह महिला पर सत्ता ज़माने का एक तरीका है, और कई केसों में पाया गया है कि साईबर स्टाकर का पीड़िता के साथ पहले कुछ संबंध था”- साईबर फोरेंसिक एक्सपर्ट, गृह मंत्रालय, टाइम्स ऑफ इंडिया, 6/9/2005
स्टाकिंग, यौन उत्पीडन का गंभीर रूप है.
यहाँ कई कारण हैं जिससे स्टाकर (पीछा करने वाले को) को हिम्मत मिलती है
- स्टाकर को यकीन होता है कि उसे आपसे प्यार हो गया है. इस तरह का जूनून या तो पूरी तरह अजनबी से हो सकता है या बॉय फ्रेंड से (जो कि ज्यादा आम बात है)
- सटाकर अपनी डराने धमकाने वाली हरकत से आपको कंट्रोल करके रखना चाहता है. उसके लिए यह ताकत और सत्ता का मामला है. यहाँ यह यौन उत्पीडन से मिलताजुलता है.
- स्टाकर ने हो सकता है आपको ऐसे ही चुन लिया हो – बस अपना तनाव या डिप्रेशन निकलने के लिए. इस प्रक्रिया में, या तो वह इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहो हो या कुछ और तरीका. यह उसका तरीका है कि ज़बरदस्ती वह आपका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता है.
- हो सकता है कोई आपसे बदले लेने या नफरत करने की वजह से पीछा कर रहा हो. यदि ऐसा है, तो सावधान रहें, हो सकता है वह आपको कोई शारीरिक नुकसान पहुंचाए.
स्टाकर कौन हो सकता है?
कोई भी स्टाकर हो सकता है – सहकर्मी, पुराना पार्टनर, पुराना बॉय फ्रेंड, पड़ोसी, दोस्त, लेक्चरर, क्लास में साथ पढ़ने वाला या कोई अजनबी. ज्यादा चांस हो सकता है कि वह व्यक्ति स्टाकर हो जिसे पहले कभी आपने ठुकरा दिया हो. या कोई पूरी तरह से अजनबी – जिससे आप कभी ऑन्लाइन (इन्टरनेट पर) मिली हों. एक खास केस में, आरोपी पवन कुमार ने 1,627 फोन कॉल किये जिसमें से 885 कॉल पुलिस कंट्रोल रूम का था, 137 कॉल एमटीएनएल ऑपरेटर को 595 कॉल मोबाईल कंपनी के कस्टमर केयर को. वह अक्सर 11 बजे रात और 6 बजे सुबह के बीच फोन करता था, और शराब के नशे में. उसे महिलाओं से बात करने में मजा आता था. ऊपर से ये नंबर चार्ज फ्री थे. [15/04/2006, द हिंदू] तमिलनाडु (2007) के एक शहर तिरुनेलवेली में लड़कियों के कॉलेज में किये गए एक छोटे से अध्ययन में (केवल 150 लड़कियों के साथ) पाया गया कि 68.7% लड़कियां अजनबी लोगों द्वारा पीछा किये जाने का शिकार थीं, जबकि बाकियों के साथ स्टाकिंग की समस्या उनके दोस्तों (13.3%) और रिश्तेदारों (18%) से थी. ज्यादातर स्टाकिंग की जगह है इंटरनेट जहाँ कोमुनिटी ग्रुप, चैट ग्रुप, फ़िल्मी गानों के साइट्स, सोशल नेटवर्किंग के साइट्स जैसे ऑरकुट और फेसबुक.स्टाकिंग कैसे असर करता है?
“हो सकता है कि कॉल करने वाला गुस्से और हिंसा की वजह से यह कर रहा हो. अक्सर ऐसा करने वाले छोड़े हुए प्रेमी या सहकर्मी जिन्हें ठुकरा दिया गया हो या पहले पति होते हैं – लोग जो अपना गुस्सा सीधे दर्शा नहीं पाते हैं. इन मर्दों को यह सोचकर रोमांच आता है कि इस तरह के फोन कॉल से औरतें किस तरह परेशान और भयभीत होती हैं. कामकाजी महिलाओं के केस में, उनके लिए काम के वक्त अपने सेल फोन पर कॉल लेना बाध्यता हो जाती है. मगर इस तरह के धमकाने वाले कॉल उनके काम पर असर डालते हैं, उन्हें डिप्रेशन में पहुंचा देते हैं और काम छोड़ देने को मजबूर कर देते हैं.”- एक मनोचिकित्सक ने द हिंदू पेपर में कोट किया, 15/04/2006 एक स्टाकर कई तरीकों से आपसे संपर्क करने की कोशिश करता है. स्टाकिंग एक खास तरह का जुर्म इसलिए भी हो जाता है क्योंकि वह एक नहीं कई तरह के तरीके इस्तेमाल करता है जो कि ज़रुरी नहीं कि अपराधिक ही हों. भले ही वे गैरकानूनी न हों (जैसे आपके घर के पास से गुज़ारना या आपको देखना) ये किसी के किये कम डरावना नहीं है. यहाँ कुछ स्टाकिंग के तरीके दिए गए हैं, मगर ये इतने तक ही सिमित नहीं हैं.- आपका पीछा करना (पैदल/गाड़ी से/इंटरनेट से)
- बार बार ब्लैंक फोन करना
- फोन पर अश्लील बातें करना
- अश्लील ईमेल भेजना
- अनचाहे पत्र भेजना
- आपकी इज़ाजत के बिना आपके फोटो खींचना
- आपके सेल फोन पर परेशान करने वाले मैसेज भेजना
- घर के बाहर खड़े रहना
- कॉलेज/काम की जगह के बाहर खड़े रहना
- ओनलाईन नेटवर्किंग साईट पर बार बार मैसेज भेजना
- आपके घर में घुसने या आपसे मिलने की कोशिश करना
- आपके बारे में अफवाह फैलाना
- आपको ओनलाइन पर अश्लील मैसेज भेजना
- आपसे संपर्क करने की कोशिश करना
- आपसे कौन मिलने आता है इसपर नज़र रखना
- आपके दोस्तों पर नज़र रखना
- आपको चोट पहुँचाने की धमकी देना
- आपके परिवार और दोस्तों को धमकाना
- आपकी संपत्ति या पालतू पशु को नुकसान पहुँचाना
- साईबर-स्टाकिंग
- आपके ऊपर नज़र रखना
- आपको अनचाहे तोहफे भेजना
- पॉर्न वेबसाइट पर आपके फोटो का गलत इस्तेमाल और आपकी जानकारी देना
क्या मुझे स्टाकर (पीछा करने वाले) के साथ सामना करना चाहिए?
नहीं. यह सलाह दिया जाता है कि आप स्टाकर से हिंसक रूप से सामना ना करें, खासतौर से जब आप अकेले हों या स्टाकर ठुकराया हुआ पार्टनर हो या जब स्टाकर एक जुनूनी व्यक्तित्व वाला हो. स्टाकर से सामना करने में हो सकता है कि शारीरिक और यौनिक हिंसा का खतरा बढ़ जाए. दूसरी तरफ आप स्टाकर की कोई मदद न करें, क्योंकि हो सकता है इसे वह बढ़ावा समझे. शांत भाव से आप स्टाकर को कहें कि आपको उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, और इसे आप हर बार स्पष्टता के साथ कहें. अपने परिवार को बताएं और पुलिस के पास जाएँ.“मैंने ही उसे बढ़ावा देने के लिए कुछ किया होगा.”
नहीं! स्टाकर के बर्ताव के लिए आप बिल्कुल भी ज़िम्मेदार नहीं हैं. खुद को उसके पीछा करने की हरकत का दोषी ठहराना सही नहीं है. भारत में, यह आम सोच है कि महिला ही मुसीबत को बुलाती है (अपने व्यवहार से, दिखावे, पहरावे या जीवन जीने के तरीके से). यह सही नहीं है. आपने स्टाकर को बढ़ावा देने के लिए कुछ भी नहीं किया है. यदि किसी और के द्वारा किये गए अपराध के लिए आपको जिम्मेवार ठहराया जाए तो आप इसका विरोध करें. याद रखें, आपका पीछा करने के लिये स्टाकर को सज़ा मिलनी चाहिए ना कि आपको.“हो सकता है कि वह मुझे प्यार करता हो.....”
स्टाकर इसलिए पीछा करते हैं कि वे पीड़िता की जिंदगी पर कंट्रोल करना चाहते हैं. हो सकता है कि वे अपने प्यार का हवाला दें मगर यह सिर्फ एक तरीका है दूसरे इंसान के जीवन पर कंट्रोल करने का. प्रियदर्शीनी मट्टू, दिल्ली की एक कानून की छात्रा का उसके सीनियर ने एक साल तक पीछा किया. उसने उस सीनियर को रिजेक्ट कर दिया तो उस आदमी ने प्रियदर्शीनी मट्टू का बलात्कार किया फिर बेरहमी से उसका क़त्ल कर दिया. अगर स्टाकर आपका अन्तरंग पार्टनर है तो उससे सामना करना मुश्किल है-मगर सामना करना भी है इसलिए बगैर भावुक हुए स्पष्टता से कहें. जो आपको कंट्रोल करे वह आपको प्यार नहीं कर सकता. एक स्वस्थ और बीमार रिश्ते के बीच के फर्क को पहचानें.“स्टाकर पगाल या मानसिक रूप से परेशान आदमी होता है.”
यह बात सच हो भी या नहीं भी हो सकती है. यदि स्टाकर मानसिक रूप से परेशान है तो यह बात इसपर निर्भर करती है कि आपका पीछा करने के पीछे उसका क्या मकसद है. स्टाकर का जो भी मकसद हो, हो सकता है कि वह नार्मल हो, पढालिखा हो, नौकरीपेशा हो और अच्छे घर से हो. याद रखें, स्टाकर के मन में निचे दी गई भावनाएं हों :- मर जाने की हद तक आपसे प्यार
- हो सकता हो उसे लगता हो कि आप भी उसे प्यार करती हैं
- आपके प्रति नाराज़गी हो, ज़रुरी नहीं कि प्यार में
- आपके द्वारा ठुकराया गया हो और आपसे रिश्ता या बदला चाहता हो.
- आप पर यौनिक हिंसा करना चाहता हो या शारीरिक रूप से आपके ऊपर ताकत आज़माना चाहता हो.
“ स्टाकिंग नुकसान पहुँचाने वाली क्रिया नहीं है”
स्टाकिंग नुकसान पहुँचाने वाली क्रिया है. वास्तव में, जो स्टाकिंग को झेलता है वह भयानक दबाव और डर में जीता है. यहाँ ऐसे कई केस हो चुके हैं जहाँ शिकार महिला ने लगातर होने वाली हिंसा और डर से मजबूर होकर आत्महत्या कर लिया है. यहाँ हमेशा यह डर रहता है कि स्थिति बहुत खराब हो जायेगी या हिंसक हो जायेगी. यह कई शिकार महिलाओं को स्टाकिंग के बारे में चुप रहने को मजबूर करता है. मगर ख़ामोशी से स्थिति बाद में और भी बिगड़ जाती है. आपको ना तो स्टाकर के साथ सामना करना चाहिए ना ही उसे नज़रंदाज़ ही करना चाहिए. आपको कोई ना कोई कदम ज़रूर उठाना चाहिए.साईबर स्टाकिंग
“ स्कूल कॉलेज में जागरूकता लानी चाहिए ताकि बच्चे टेक्नोलॉजी के नकारात्मक असर का शिकार ना हो सकें. इस साल, मार्च तक हमने साईबर स्पेस में होने वाले महिलाओं और बच्चों के खिलाफ़ हिंसा की 20 याचिकाएं पाई हैं.”- – असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर, साईबर क्राइम सेल, 03/05/2007, द हिंदू
हर रोज़ हम या तो बिजनेस या मनोरंजन के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. इसके परिणाम में हम कई जानकारी के स्त्रोत छोड़ जाते हैं, वेबसाइट जो हमने विसिट किया हो, फोटोग्राफ्स, संपर्क विवरण, जन्म की तारीख और अन्य व्यक्तिगत जानकारी. जो इंटरनेट की जानकारी रखता है और रूचि रखता है उसके लिए आपके बारे में जानकारी खोज लेना मुश्किल नहीं है, खासतौर से ऑरकुट, ट्विटर, माई स्पेस और फ़ेसबुक से. ऑरकुट के बारे में तो यह प्रचलित है कि इसमें स्टाकर का अपना ग्रुप है जो ‘ऑरकुट स्टाकर’ और ‘स्टाकर क्लब’ के नाम से जाना जाता है. इसके 664 सदस्य हैं. ये ग्रुप कई तरह से महिलाओं का पीछा करने की जानकारी देते हैं. [04/03/2006, द हिंदू] साईबर स्टाकिंग का मतलब है इंटरनेट और इलेक्ट्रोनिक तरीकों का पीछा करने में इस्तेमाल करना. यह कई तरीके और डिग्री का हो सकता है. इससे खासतौर से खतरा होता है क्योंकि स्टाकर की पहचान पता नहीं चलती और इंटरनेट कई लोगों को असहज करता है. और सबसे जरुरी बात कि क्यों आपको ऑनलाइन सावधानी बरतने की ज़रूरत है.नीचे कुछ साईबर- स्टाकिंग के उदाहरण दिए गए हैं.
- अपनी व्यक्तिगत जानकारी/फोटो आदि को पोर्नोग्राफिक वेबसाईट पर डालने के बाद आपको अचानक किसी अजनबी से अश्लील कॉल आने लगते हैं.
- जब कोई आपका ऑनलाइन पीछा करता है.
- आपके ईमेल पर बार बार अनचाहा मैसेज आना.
- ऑनलाइन कम्यूनिटी पर आपके बारे में अफवाह फैलाना
- आपको अनचाहा अश्लील ईमेल भेजना
- लगातार अश्लील या धमकी भरे ईमेल के जरिये आपसे संपर्क करने की कोशिश करना
- आपको अश्लील सामग्री भेजना
- इंटरनेट के जरिये आपके व्यक्तिगत जानकारी पर नज़र रखना
- आपके ईमेल आई डी और पासवर्ड को हैक करना
- आपको झूठी पहचान के साथ इंटरनेट पर संपर्क करना
नीचे दी गईं कुछ सावधानियां हैं जो आप अपना सकती हैं
- ‘चैट फ्रेंड्स’ को अपनी व्यक्तिगत जानकारी ना दें
- ऑफलाइन चैट फ्रेंड से मिलने से बचें. हो सकता है वह व्यक्ति वह ना हो जो इंटरनेट पर हो. यदि आपको मिलना ही है तो सार्वजनिक जगहों पर मिलें और किसी दोस्त को साथ ले जाएँ. आपके परिवार के किसी सदस्य को भी जानकारी होनी चाहिए कि आप कहाँ जा रही हैं.
- अपना ईमेल आई डी और पासवर्ड किसी से भी न शेयर करें, यहाँ तक कि दोंस्तों या भाई बहनों से भी.
- ऑनलाइन आप किसे दोस्त बनाती हैं इस बारे में सावधानी बरतें, खासतौर से फेसबुक और ऑरकुट पर
- उन लिंक्स पर क्लीक ना करें जिसे साथ अनचाहे ईमेल भी लिंक्ड हो
- सावधान रहें आप अपना व्यक्तिगत विवरण जैसे घर का पता, फोन या सेल नंबर और अपना असली नाम उन लोगों को ना दें जिनसे हाल ही में ऑनलाइन मुलाकात हुई हो.
- जिनसे हाल में ही मुलाकात हुई हो उन्हें अपने फोटोग्राफ्स ना भेजें
- नेटवर्किंग साईट में गुप्तता का विकल्प रखें. लेकिन फिर भी सतर्क रहें क्योंकि यहाँ से भी जानकारी हैक की जा सकती है.
- जो भी ऑनलाइन सर्विस आप इस्तेमाल करती हैं उसका असाधरण और अलग सा पासवर्ड रखें.
- अपना क्रेडिट/डेबिट की जानकारी किसी भी ईमेल या वेब पेज को ना दें. अधिकतर बैंक ऐसी जानकारियां ईमेल या फोन पर नहीं मांगती हैं.
- अपने प्रोफाइल को मिटाए नहीं इससे सबूत मिट जाएगा.
संभावित कदम
सबसे पहली बात इसे गंभीरता से लें. आप जितना सावधानी बर्तेंगीं उतना ही आप इसे रोक पाएंगीं और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएंगीं. आप जो भी रणनीति अपनाएं आपकी अपनी सुरक्षा सबसे पहले होनी चाहिए.
जवाब न दें!
स्टाकिंग के केस में पीछा करने वाले का सामना ना करना ही भलाई है. उसे एक बार आप कह सकती हैं कि वह पीछा ना करे. अपनी बात मजबूती से कहें मगर आवाज़ में रूखापन ना लाएं. याद रखें, स्टाकर आपसे संपर्क साधने कि कोशिश करेगा. उसके संपर्क का कोई जवाब ना दें. यदि वह आपसे मिलने आपके घर या काम की जगह पर आता है तो उसे चले जाने के लिए कहें. मजबूत रहें ना तो बहुत नम्र हों ना ही रूखे हों. उससे ना तो सार्वजनिक ना ही निजी जगहों पर मिलें. आप उसे जानती हों फिर भी. इससे आपका केस कमजोर हो सकता है, इसे स्टाकर के साथ आपका सहयोग ही माना जायेगा. यदि स्टाकर आपको बार बार फोन कर रहा हो, तो जवाब ना दें, बस बगैर लाइन काटे हुए नीचे रख दें, मैसेज और ईमेल का भी जवाब ना दें. यदि आप स्टाकर को जानती हैं जैसे वह घर के आस पास रहता हो या आपके काम की जगह पर ही काम करता हो, तो यह आपके लिए आसान नहीं है. वह दोस्त, जानपहचान वाला, पड़ोसी, सहकर्मी या पुराना साथी और बॉय फ्रेंड हो सकता है. जो भी हो महत्वपूर्ण ये है कि आप उसका सहयोग ना करें. उसी समय याद रखें कि स्टाकर के साथ सीधे या हिंसक तरीके से सामना करने से मामला और बिगड़ सकता है.स्टाकर को क्या नहीं कहना चाहिए
अनजाने रूप से ही सही मगर स्टाकर को कोई बहाना ना दें, खासतौर से जब वह आपका दोस्त हो या जान-पहचान वाला या पुराना पार्टनर. ‘ना’ का मतलब ना ही है. आपको खुद को स्पष्टीकरण देने की ज़रूरत नहीं है.- स्टाकर के साथ बहस/चर्चा/मोलतोल ना करें
- यह ना कहें कि ‘मेरा बॉय फ्रेंड’ है या ‘मैं शादीशुदा हूँ’. इससे लगता है कि यदि आपका बॉय फ्रेंड ना होता या शादी ना हुई होती तो आप उसमे दिलचस्पी लेतीं
- यह ना कहें कि आप अभी इस समय रिश्ते में दिलचस्पी नहीं रखतीं. इससे यही लगता है कि आने वाले भविष्य में आप रिश्ता रखना चाहती हैं
- यह ना कहें कि अभी आप वयस्त हैं. इससे स्टाकर को बाद में आपसे संपर्क करने का हौसला मिलता है
- आप स्टाकर से कोई संपर्क करने की कोशिश ना करें. यह सीधे तौर पर स्टाकर को सहस देगा.
स्टाकिंग को डोक्युमेंट करें
यह बहुत ज़रुरी है कि आप स्टाकर जो जो करे उसे नोट करने के लिए डायरी लिखें. रिकॉर्ड रखना महत्वपूर्ण है, भविष्य में जब आप केस करना चाहें तो यह सबूत के तौर पर काम आ सकता है. अपनी डायरी में निम्नलिखित बातें नोट करें :- फोन, इसकी बातें, फोन करने का वक्त और कॉल की अवधि
- कोशिश करें यदि आप कालर आई डी लगवा लें. जिस नंबर से फोन आये उसे नोट कर लें. हो सकता है यहाँ एक से ज्यादा नंबर हो.
- स्टाकर की हरकारों का रिकॉर्ड रखें, जैसे कि यदि वह आपका पीछा किये जा रहा है, आपसे बात करने की कोशिश कर रहा है, आपके परिवार से संपर्क करने की कोशिश कर रहा है. यह भी रिकॉर्ड करें कि उसने कपड़े क्या पहने हुए थे.
- आपका पीछा करने के लिए यदि स्टाकर ने कोई कार या अन्य वाहन इस्तेमाल किया हो तो उसका विवरण नोट करें.
- यदि उसने आपको कोई ईमेल भेजा है तो उसे मिटाए नहीं. उसका प्रिंट रखें. भविष्य में केस के लिए इस्तेमाल करने के लिए उसे संभल कर रखें.
- यदि उसने किसी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया है तो पुलिस को बुलाने के पहले उसकी तस्वीर ले लें.
- यदि आपको उसने कोई खत भेजा है तो वह भी संभल कर रखें.
- ऑनलाइन यदि उसने चैट पर मैसेज भेजा तो वह भी सुरक्षित रखें.
- स्टाकर की ऑनलाइन प्रोफाइल रखें यदि वह साईबर स्टाकर है
- वेबसाईट के पते रखें जहाँ जहाँ स्टाकर विसिट करता हो
- यदि उसने कोई उपहार दिया है तो उसे रखें.
दोस्त और परिवार
स्टाकिंग से पीड़ित लोग यह बात खुद तक ही रखते हैं, सोचते हैं कि यदि वे स्टाकर को नज़रंदाज़ करेंगें तो वह खुद ही चला जाएगा.
वास्तव में आप कदम उठाने में जितनी देर करेंगीं, आप उतना ही ज्यादा समय स्टाकर को बढ़ावा देंगीं. अपने दोस्तों और परिवार को इस बारे में जानकारी दें ताकि वे आपकी मदद कर सकें. यदि स्टाकर आपकी काम की जगह का है तो आपके सहकर्मियों को इस बारे में पता होना चाहिए. कभी कभी परिवार से दी गई चेतावनी भी स्थिति को संभल देती है, खासतौर से जब स्टाकर आपके इलाके में रहने वाला या आपका पहले का पार्टनर हो. इसके आलावा, आप जितना अन्य लोगों को इसके बारे में बतायेंगें उतना ही गवाह तैयार करेंगें, इससे आपको क़ानूनी कारवाई में मदद मिलेगी.पुलिस के पास जाना
स्टाकर के बारे में रिपोर्ट करना ज़रुरी है, खासतौर से जब भारतीय कानून के तहत स्टाकिंग एक अपराध है. इसके लिए सबसे पहली चीज आपको जो करना है वह है एफ आई आर दर्ज करवाना. हो सकता है कि पुलिस आपसे ऐसे सवाल करे कि क्या आप स्टाकर को जानती हैं; आप उसे कैसे जानती हैं; आपके रोज़ की गतिविधियों के बारे में. जहाँ जरुरत हो वहाँ व्यक्तिगत जानकारी देने में झिझके नहीं. कुछ केसों में पुलिस की एक चेतावनी भर ही स्टाकिंग को बंद कर सकती है. जितनी भी गैर क़ानूनी हरकत हुई है पुलिस को इसके बारे में बताएं. यदि स्टाकर आपका पहले का पार्टनर/बॉय फ्रेंड या जुनूनी स्वभाव का हो तो स्थिति को और भी गंभीरता से लेने की ज़रूरत है. इस मामले में आपको पुलिस के पास जाने की ज्यादा जरुरत है क्योंकि हो सकता है कि पीछा करने वाला बदमाश हो. सटाकर के लिए बुरा मत महसूस कीजिये कि आपने उसे ठुकराया या आप उसे जानती हैं और वह खुद ही ऐसा करना बंद कर देगा. जो कोई भी स्थिति हो आपको सुरक्षित इससे बाहर आना है.शिकायत अप्लीकेशन
साईबर स्टाकिंग के बारे में रिपोर्ट करने के लिए, आपको साईबर क्राइम जांच सेल के हेड को रिपोर्ट करने की जरुरत है. शिकायत अप्लीकेशन में निम्नलिखित विवरण होना ही चाहिए:- ईमेल या मैसेज का प्रिंट
- जिस नंबर से स्टाकर का फोन आया वो नंबर
- स्टाकर का जहाँ प्रोफाइल है वे वेबसाईट पता
- जरुरी वेबपेज का प्रिंट
व्यक्तिगत सुरक्षा
आपकी निजी सुरक्षा आपकी पहली प्राथमिकता है
- अगर जरुरत है तो अपने आपको शारीरिक रूप से बचाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हों.
- समय समय पर अपने परिवार को जानकारी दें कि आप कहाँ हैं.
- यदि स्टाकर पहले का या ठुकराया हुआ पार्टनर है तो पुलिस की सहायता लें.
- अपना मोबाईल फोन हाथ में ही रखें, फोन के स्पीड डायल पर इमर्जेंसी नंबर सेव करके रखें.
- घर में पालतू जानवर रखना स्टाकर से बचाव का अच्छा तरीका है
- घर में मजबूत और सुरक्षित सुरक्षा के उपाय अपनाएं.
- अपने घर की और कार की चाभी हमेशा तैयार रखें
- अपने घर में अच्छी रोशनी रखें, खासतौर से दरवाजे पे, सीढीयों पे आदि
- यदि सिक्यूरिटी गार्ड है तो उसे आवश्यक जानकारी दें जैसे आप कहाँ काम करती हैं या रहती है, और आपके घर कोई विसिटर आता है तो उसपर ध्यान रखे. उसे बताएं कि कोई आपका पीछा करता है.
- अपने पड़ोसी को को कहें कि वह आपके घर पर होने वाली संदेहजनक वारदातों का ध्यान रखें.
- अपने आसपास का ध्यान रखें, खासतौर से जब आप सार्वजनिक जगहों पर आ जा रही हों.
- अपने दोस्त या पड़ोसी को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करके रखें, और यदि जरुरत पड़े तो उनके साथ ही रहें.
- नियमित जगहों पर जाने के रस्ते को बदलते रहें जैसे स्कूल, कॉलेज, काम की जगह और घर.
- घर के दरवाजे पर देखने वाला शीशा लगवायें
- अपना फोन नंबर ना बदलें
- अपनी इन्द्रियों पर भरोसा करें. वे आपके सबसे अच्छे दोस्त हैं, खासतौर से जरुरत के समय.
स्टाकिंग (पीछा करना) से निपटने के लिए कानून
भारतीय कानून के सेक्शन जो स्टाकिंग के लिए इस्तेमाल हो सकता है उसे जानना ज़रुरी है. स्टाकिंग से निपटने के लिए अलग से कोई कानून नहीं है. स्टाकिंग के केस निम्नलिखित सेक्शन के अंतर्गत आ सकते हैं. इन्डियन पिनल कोड का सेक्शन 294 : अश्लील गाने और हरकतेंक़ानूनी कदम उठाना
अभी तक भारत में यौन उत्पीडन का लिए कोई कानून नहीं है. इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा कानून को तोडमरोड कर इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, इन्हीं मौजूदा कानून को लेकर हमें आगे चलना है. इस प्रक्रिया में यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने अधकार को जानें. एक जागरूक महिला के पास सिस्टम से लड़ने के लिए बेहतर चुनाव है. कानून के इस्तेमाल के विकल्प को लेकर चलने के पहले इसकी कमियों और समस्याओं के बारे में भी जान लें. यौन उत्पीडन के कानून ‘शील भंग’, ‘परेशान’ करने या ‘अश्लीलता’ के आधार पर बने हैं, जिन्हें परिभाषित करना और इसलिए इस्तेमाल करना मुश्किल है. पूरी क्रिमिनल प्रक्रिया लंबी और पेचीदी है. एक निश्चित समय के बाद ही केस कोर्ट तक पहुँचते हैं, और जब पहुँचते हैं तो पूरी प्रक्रिया उतनी असरदार नहीं रहती. इसकी कुछ खास कमियां जो नीचे दी गई हैं उनके बारे में जानना जरुरी है.
- बड़े पैमाने पर साबित करने कि ज़िम्मेदारी महिलाओं पर ही है. उसे ना केवल यह साबित करना है कि उसके पास शीलता और नैतिकता है बल्कि यह भी साबित करना होगा कि उत्पीडक ने अपने व्यवहार से इस शीलता का हनन किया है.
- पीड़िता को यह भी साबित करना होगा कि उत्पीडक का व्यवहार यौनिक था. कानून में पुरातनपंथी शब्दों का भरमार है.
यौन उत्पीडन के लिए सुप्रीम कोर्ट की मार्गदर्शिका
महिला समूह के लंबे संघर्ष के परिणाम में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा जजमेंट पास किया. इस संघर्ष के बीच बहादुर और संघर्षशील छवि भंवरी देवी की थी. जो राजस्थान के एक गांव में साथिन (एक ग्रामीण कर्मचारी, जो राजस्थान सरकार के महिला विकास कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यरत थी), भंवरी देवी का गांव के ही ऊँची जाति के लोगों ने बलात्कार किया था. भंवरी ने बाल विवाह के विरोध में गांव में आवाज़ उठाई थी, इसके लिए उससे बलात्कार किया गया. उसकी तकलीफ का यहीं अंत नहीं था. जब वह शिकायत दर्ज करने गई तो रात भर महिला पुलिस उसपर ताने कसती रही, उसे मेडिकल की सुविधा नहीं दी गई और सामाजिक रूप से गांव वालों ने उसका बहिष्कार किया. महिला समूहों ने जोरशोर से न्याय के लिए अभियान चलाया. दिसंबर, 1993 में विशाखा बनाम राजस्थान सरकार केस में, राजस्थान हाई कोर्ट ने घोषित किया कि भंवरी देवी का बदले के लिए सामूहिक बलात्कार किया गया था. अंत में महिला समूहों ने सुप्रीम कोर्ट में जन याचिका संहिता दर्ज की. 1997 में विशाखा बनाम राजस्थान सरकार केस पर सुप्रीम कोर्ट का जो जजमेंट आया वो कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन के मामलों के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ. न केवल पहली बारे यौन उत्पीडन को परिभाषित किया गया बल्कि मालिक पर यह दायित्व डाला गया कि वह अपने कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन के बारे में जागरूकता लाये और शिकायत कमिटी सथापित करे. तो आपके लिए विशाखा गाइडलाइंस का क्या मतलब है? यह निर्भर करता है कि आप मालिक हैं या यौन उत्पीडन सहने वाली पीड़िता. किसी भी ऑफिस के लिए विशाखा गाइडलाइंस उपयुक्त है, चाहे वह सरकारी हो या निजी या गैर सरकारी. मालिकों को विशाखा गाइडलाइंस पर ध्यान देना ही होगा और जरुरी कदम उठाने होंगें.- आप चाहें सरकारी या गैर सरकारी संस्थान में हों, आपके संस्था में निति के तहत यौन उत्पीडन जैसी घटनावों का रोकथाम होना चाहिए. इसकी जानकारी सभी कर्मचारियों को होनी चाहिए जब वे ज्वाइन करते हैं तब और बीच बीच में भी उन्हें याद दिलाना चाहिए. कंपनी को यौन उत्पीडन के मामले को गंभीरता से लेना चाहिए.
- यौन उत्पीडन पॉलिसी के अंतर्गत सारे कर्मचारी आने चाहिए चाहे वे आरोपी हों/पीड़िता एडमिनिस्ट्रेशन से हों, प्रशाशन से हों, अन्य ऑफिसर या बोर्ड के सदस्य. पॉलिसी बनने के लिए आपको जानना जरुरी है कि यौन उत्पीडन क्या है ताकि इसे अपने सभी कर्मचारियों (दोनों मर्दों और औरतों के लिए) तक साधारण भाषा में पहुँचाया जा सके.
- यदि आप सरकारी सेक्टर में हैं तो आपको अपने अनुशाशन और नियमों कायदों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन को एक गलत नियमों के तहत शामिल करना.
- यदि आप फैक्ट्री के मालिक हैं तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आप पहचाने कि यौन उत्पीडन इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट के स्टैंडिंग कमिटी का हिस्सा है. एक्ट, 1946
- यदि कोई अपराध इन्डियन पिनल कोड के अंतर्गत आता है, यह आपकी ड्यूटी है कि आप इसे पुलिस के पास अलग से रजिस्टर करें.
- इसके आलावा सभी मालिकों को सुरक्षात्मक तरीके अपनाने होंगे, जैसे यौन उत्पीडन पॉलिसी के बारे में जागरूकता फैलाना, मीटिंग में इन मामलों पर बातचीत करना, महिला अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना.
- यदि मामला दुर्व्यवहार का है तो इसके खिलाफ़ उचित कारवाई करनी चाहिए.
एक अधिकारी के पास शिकायत करने की प्रक्रिया की व्यवस्था होनी चाहिए. औपचारिक और अनौपचारिक तरीके और जरुरी संपर्क डिटेल अपनी जगह पर होना चाहिए. व्यवस्था को चाहिए कि वे महिला कर्मचारियों के भीतर आत्मविश्वास बढ़ायें.
- सभी काम की जगह पर शिकायत प्रक्रिया जरुरी है
- शिकायत कमिटी की प्रमुख महिला होनी चाहिए
- कम से कम 50% महिला मेंबर होनी चाहिये
- इस कमिटी में बाहरी और थर्ड पार्टी होनी चाहिए और वो यदि गैर सरकारी संस्था से हो या जो यौन उत्पीडन के विषय में समझ रखता हो, तो बेहतर है.
- शिकायतकर्ता को यह हक है कि वह शिकायत को गोपनीय रखे. औपचारिक प्रक्रिया करते समय शिकायत कमिटी को यह ध्यान रखना जरुरी है.
- शिकायत कमिटी को समय बद्ध होना चाहिए. बिला वजह सुनवाई में देरी नहीं होनी चाहिए
- किसी भी कार्यस्थल पर सदस्यों को महिला के प्रति संवेदनशील होना चाहिए.
- शिकायत कमिटी को सरकारी विभाग या संस्था संबंधी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए
- शिकायत कमिटी और मालिक/प्रशासन की बचाव की भूमिका है.
- शिकायतकर्ता और गवाह को गोपनीयता का अधिकार है. औपचारिक प्रक्रिया के दौरान मालिक का इस बात का सम्मान करना जरुरी है.
- मालिक होने के नाते आपकी यह ज़िम्मेदारी है कि आप शिकायत कमिटी सदस्यों की औपचारिक ट्रेनिंग करवाएं. जेंडर के क्षेत्र में दक्ष एक्सपर्ट को यौन उत्पीडन पॉलिसी बनने के लिए बुलाना चाहिए.
- शिकायत कमिटी को स्वतंत्र इकाई की तरह काम करना चाहिए ताकि यह स्वतंत्र रूप से काम कर सके जब मालिक खुद ही यौन उत्पीडन जैसा अपराध करे.
- थर्ड पार्टी यौन उत्पीडन के मामले में शिकायतकर्ता को सहयोग मिलना चाहिए.
- बजट में से कुछ हिस्सा शिकायत कमिटी की ट्रेनिंग, वर्कशॉप और अनौपचारिक चर्चा के लिए अलग से रख लें.
यौन उत्पीडन की शिकार होने या शिकायतकर्ता होने के नाते आपको यौन उत्पीडन की परिभाषा मालूम होना चाहिए और यह भी कि औपचारिक रूप से ऐसे केस को कैसे उठाना चाहिए.
- आपकी ये जिम्मेदारी बनती है कि आप अपने सहकर्मियों को मौजूदा यौन उत्पीडन की पॉलिसी या विशाखा गाइडलाइंस के बारे में बताएं आप मालिक-कर्मचारी मीटिंग या स्टाफ मीटिंग में यौन उत्पीडन के मुद्दे के बारे में चर्चा कर सकते हैं आपको अपने मालिक/प्रशासन से यौन उत्पीडन के बारे में सवाल करने का हक है. बाहर के किसी आदमी/क्लाइंट/थर्ड पार्टी सदस्य द्वारा यौन उत्पीडन होने से आपको यह अधिकार है कि आप अपने मालिक से सहयोग की मांग करें. विशाखा गाइडलाइंस द्वारा दी गई मालिकों की जिम्मेदारियों के बारे में जानें. मालिक, प्रशासन और शिकायत कमिटी को आपका और गवाह का बचाव करना चाहिए ताकि आपके यौन उत्पीडन के केस की शिकायत करने के लिए वे बदला लें/डराए धमकाएं या मामले का मजाक बनायें.
क्रिमिनल केस फाइल करना
क्रिमिनल केस फाइल करने का मतलब है कि आप केस को अंत तक ले जाना चाहती हैं. इसका मतलब है ज्यादा समय और पैसा. सबसे पहले एफ आई आर दर्ज करवानी होती है. जैसे कि यह क्रिमिनल केस है, इसमें किसी अन्य द्वारा भी केस दर्ज कराया जा सकता है. उदहारण के लिए शत्रुता भरे माहौल के केस में सामूहिक रूप से जोइंट केस दर्ज कराया जा सकता है. इसके आलावा कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन के केसों में मालिक क़ानूनी तौर पर पुलिस में केस दर्ज कराने के लिए बाध्य है.
- यह महत्वपूर्ण है कि आप जाने कि कोग्निजिबल और नॉन-कोग्निजिबल अपराध में क्या फर्क है. नॉन-कोग्निजिबल अपराध (जहाँ पुलिस बगैर वारेंट के आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती), उत्पीडन की शिकार महिला को नॉन-कोग्निजिबल रिपोर्ट देनी पड़ती है. इस रिपोर्ट को इसके बाद मजिस्ट्रेट के पास आगे की कार्यवाई के लिए भेजा जाता है.
- इसके बाद पुलिस द्वारा मामले की जांच होती है, जो इस स्तर पर स्टेटमेन्ट रिकॉर्ड करके सबूत इकट्ठा करता है. वे सहकर्मियों, मालिक से सवाल जवाब करते हैं और यदि कोई डोक्युमेंट है तो उसे एकत्रित करते हैं. जांच के आधार पर ही पुलिस तय करती है कि आरोपी को गिरफ्तार किया जाए या नहीं. जांच के बाद, पुलिस चार्ज शीट तैयार करती है जिसे मजिस्ट्रेट को जमा करना होता है.
- इसके बाद केस कोर्ट के प्रस्तुत किया जाता है. फिर आरोपी या तो न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है (कोग्निजीबल अपराध के लिए) या पुलिस आगे जांच के लिए परमिशन लेती है (नॉन-कोग्निजिबल अपराध) के लिए.
- कोर्ट द्वारा चार्ज फ्रेम किया जाता है, जहाँ आरोपी को इसके बारे में बताया जाता है और अपना पक्ष (अपराधी है या नहीं) सामने रखने के लिए कहा जाता है.
- दोनों पक्षों के सबूतों और गवाहों को जांचा परखा जाता है.
- दोनों पक्षों द्वारा बहस सामने रखा जाता है.
- अंत में फैसला सुनाया जाता है, और आरोपी को या तो सज़ा दी जाती है या छोड़ दिया जाता है.
सिविल केस फाइल करना
यौन उत्पीडन के केस को सबसे नीचे वाले सिविल कोर्ट में फ़ाइल किया जा सकता है. जहाँ क्रिमिनल कानून का मकसद अपराधी को सज़ा दिलाने का होता है वहीँ सिविल कानून ही केवल एक तरीका है जिसके तहत हर्जाना मिल सकता है. हालांकि, प्रक्रिया जटिल है और यह महत्वपूर्ण है कि आप क़ानूनी सलाह लें.
- सूट केस फ़ाइल करने का पहला कदम है शिकायतकर्ता को तैयार करना. यह एक डीटेल डोक्युमेंट होता है जिसमें प्रार्थी का नाम और पता दर्ज होता है, घटना का डीटेल होता है, याचिका का डीटेल, सूट की कीमत और बहस के लिए सारे जरुरी डोक्यूमेंट होते हैं.
- यदि आपको हर्जाना चाहिए तो घटना के एक साल के अंदर शिकायत दर्ज करना चाहिए.
- एक बार जब सूट फ़ाइल हो जाता है और जज या सम्बंधित अधिकारी द्वारा सुनवाई हो जाती है तो ये प्रार्थी को स्टेटमेंट फ़ाइल करने को कहते हैं. यह लिखित स्टेटमेंट सम्मन जारी होने के एक महीने बाद फ़ाइल होना चाहिए.
- इसके आधार पर दोनों वादी प्रतिवादी को कोर्ट में हाजिर होना होगा, ऐसा न होने पर केस रद्द कर दिया जाएगा. यदि वादी प्रस्तुत नहीं हो पाता तो कोर्ट द्वारा एक्सपर्ट ऑर्डर पास किया जाता है.
- पहली सुनवाई पुछताछ, डोक्युमेंट की जांच और जारी किया गया स्टेटमेंट, अंत में फैसले के घोषित होने के साथ होती है.
- लिखित में शिकायत देने पर केस के दौरान शिकायतकर्ता कमिटी की यह जिम्मेदारी होती है कि आप पर आगे होने वाले उत्पीडन (आरोपी या सहकर्मियों से) बचाव करे.
कोग्निजीबल और नॉन-कोग्निजीबल अपराध
कग्निजिबल अपराध | नॉन- कग्निजिबल अपराध |
---|---|
|
|
इन्डियन पिनल कोड के अंतर्गत कानून
हम संछेप में यहाँ इन्डियन पिनल कोड के अंतर्गत कुछ कानून की चर्चा कर रहे हैं. याद रखें यदि आप इन कानूनों का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको पहले वकील के पास जाने की जरुरत है.
इन्डियन पिनल कोड 294: अश्लील हरकतें और गाने
कोई भी जो दूसरों को परेशान करता हो:
(a) किसी सार्वजनिक जगह पर अश्लील हरकत करता हो
(b) किसी सार्वजनिक जगह पर अश्लील गाने गाता है, शब्द बोलता है आदि
इन्डियन पिनल कोड 354: किसी महिला का शील भंग करने के लिए उसपर अत्याचार और जबरदस्ती करना
किसी महिला का शील भंग करने के लिए उसपर अत्याचार और जबरदस्ती करना या वह ऐसा करेगा इसकी जानकारी होना. [कोग्निजीबल और जमानती]
इन्डियन पिनल कोड 509: शील भंग करने के लिए शब्द, हावभाव या हरकत करना
किसी महिला की शीलता को अश्लील भाषा, टिप्पणी, आवाज़ या हावभाव या कोई वस्तु दिखाकर भंग करना या उसकी प्राइवेसी का उलंघन करना. [कोग्निजीबल और जमानती] इन्डियन पिनल कोड 503: क्रिमिनल घमकी जो कोई भी किसी को उसे चोट पहुँचाने, उसके मान सम्मान को चोट पहुँचाने या संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की धमकी देता है, या फिर उस आदमी के पहचान वाली किसी को ऐसी ही धमकी देता है या किसी को गैर क़ानूनी काम करने की धमकी देता है तो यह सारी हरकतें क्रिमिनल धमकी कहलाती हैं. इन्डियन पिनल कोड सेक्शन 354 का इस्तेमाल तभी होता है जब उत्पीडक महिला का शील भंग करने के इरादे से उसपर जोर जबरदस्ती करता है- यह सेक्शन 509 से ज्यादा गंभीर है जिसमे ज्यादा कड़ी सज़ा, दो साल या जुर्माना या दोनों, का प्रावधान है.
- हरकत का चरित्र यौनिक होना चाहिए. इसके आलावा, इसमें मौखिक उत्पीडन जैसे सिटी मारना, अश्लील छींटाकशी करना, गाने गाना आदि शामिल नहीं है.
- इस सेक्शन के अंतर्गत सारे शारीरिक यौनिक उत्पीडन आते हैं जैसे घूरना, उत्पीडन और यौनिक उत्पीडन. कोई भी हरकत जिससे महिला की प्राइवेसी का उलंघन होता है, जैसे उसके फोन पर परेशान करने वाला सन्देश भेजना, या उसकी गैरहाजिरी में उसकी चीजों की छानबीन करना या महिला को परेशान करने के लिए उसके कपड़ों को हाथ लगाना, इस सेक्शन के अंतर्गत आता है. कोई भी हरकत जो महिला को परेशान करने और डराने के लिए किया जाए इस सेक्शन के अंतर्गत आएगा.
इंडियन पिनल कोड 509 में शामिल है वे सारे अश्लील शब्द, हावभाव या हरकत जो यौनिक चरित्र के हैं. जो किसी महिला के शील को भंग करने या उसकी प्राइवेसी का उलंघन करने के लिए किया जाए.
- इस सेक्शन के अंतर्गत साधारण एक साल तक कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकती है.
- हरकत का चरित्र यौनिक होना चाहिए. इस सेक्शन में शारीरिक उत्पीडन शामिल नहीं है.
- सेक्शन 509 में अश्लील टिप्पणी करना, गाने गाना, सिटी मारना, अश्लील हावभाव बनाना, किसी महिला का पीछा करना, गंदे पत्र और ईमेल भेजना, डराने धमकाने जैसी हरकत करना, शामिल है. साथ ऐसी कोई हरकत करना जिससे सार्वजनिक जगहों पर महिला के आने जाने में दिक्कत हो.
- इस सेक्शन के अंतर्गत जिसके साथ यौन उत्पीडन हुआ है उस महिला को यह साबित करना होगा कि उत्पीडक ने उसके शील को भंग करने का प्रयास किया है. यह उत्पीडित के हावभाव और हरकतों से साबित होता है.
शीलता क्या है?
“....किसी महिला की शीलता का उलंघन हुआ है कि नहीं इसे जांचने का यही तरीका है कि देखा जाए कि क्या इस हरकत से महिला की चरित्र का हनन हुआ है.”
– सुप्रीम कोर्ट का बजाज बनाम के.पी.एस गिल केस में बयान (1995) 6 एससीसी 194
इन्डियन पिनल कोड में ‘मोडेस्टी’ यानि ‘शीलता’ सबसे ज्यादा विवाद का विषय है. एप्रेल एक्सपोर्ट बनाम ए.के.चोपड़ा केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यौन उत्पीडन को परिभाषित किया था “ कोई भी हरकत या हावभाव, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महिला सहकर्मी की शीलता का उलंघन करे.” यह दोनों सेक्शन 354 और 509 के लिए लागू होता है. ओनलाईन मेर्रियम-वेबस्टर के मुताबिक इसका मतलब है, ‘कपड़े पहनने, बोली और व्यवहार में शीलता’. यह विरोधाभास ही साबित करता है जैसे कि अक्सर शिकायतकर्ता की शीलता उसके व्यवहार और स्वभाव पर निर्भर करता है. इसके आलावा, शिकायतकर्ता के पास शीलता होनी चाहिए जिसका उलंघन किया गया हो. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बजाज बनाम के.पी.एस. गिल केस में सकारात्मक निर्णय दिया है.
इंडियन पिनल कोड 294 अश्लीलता के लिए क्लॉज है जिसमें शामिल है सार्वजनिक जगह पर अश्लील हरकत करना और जिससे आसपास लोगों को इससे परेशानी हो.
- इसकी सज़ा तीन महीने तक की हो सकती है या जुर्माना या फिर दोनों.
- इस सेक्शन में कार्यस्थल पर पोर्नोग्राफिक ईमेल भेजना, अश्लील चुटकुले सुनना, अश्लील टिप्पणी करना, अश्लील गाने गाना, सार्वजनिक जगहों पर अश्लील आवाज़ और हावभाव जैसे अपराध शामिल हैं.
- यह जानने के लिए कि हरकत इस सेक्शन के अंतर्गत आता है कि नहीं यह देखना जरुरी है कि उसकी हरकत जैसे कि गाना/शारीरिक हावभाव/शब्द सार्वजनिक जगहों पर उत्पीडक को परेशान कर रहे हैं या नहीं. जैसा कि यह मानसिक तनाव का मामला बन जाता है इसलिए इसे साबित करना जरुरी है,
इंडियन पिनल कोड का सेक्शन 503 बहुत ही अहम एक्ट है क्योंकि यह कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन और जिन महिलाओं को उनके पुराने साथी पीछा करके उत्पीडित करते हैं, उसके लिए इस्तेमाल होता है.
- किसी को यौन उत्पीडन की धमकी देना या किसी महिला में गंभीर अपराध का डर बैठा देना जैसे अपराध इस सेक्शन के अंतर्गत आते हैं. उदाहरण के लिए, जब कोई मालिक/सुपरवाइजर/स्टाकर (पीछा करने वाला) सीधे तौर पर यौन संपर्क की मांग नहीं करता मगर उसकी तरफ इशारा करता है. या जब कोई महिला अपने पुराने पार्टनर या बिल्कुल अंजान व्यक्ति से डरती है. इससे महिला की प्राइवेसी, उसकी सम्पति और उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान का डर भी होता है.
- कोई भी डराने धमकाने वाली हरकत जो किसी महिला को जोर जबरदस्ती करे कि वह ऐसा काम करे जो इस सेक्शन के अन्तर्गत गैर क़ानूनी है. उदाहरण के लिए, जब किसी महिला को डराया जाये जब वह ‘डेट’ के लिए ना जाए.
- सेक्शन 503 में वो सभी हरकत शामिल होते हैं जो महिला को जोर जबरदस्ती कर उसे वो सब नहीं करने देता जो वह क़ानूनी रूप से कर सकती है. उदाहरण के लिए, जब किसी महिला को डराया धमकाया जाता है जब वह यौन उत्पीडन की औपचारिक शिकायत दर्ज करना चाहती है या अन्य कोई निर्णय लेना चाहती है.
महिला को उनुचित रूप से प्रदर्शित करना, एक्ट (1987) सेक्शन 294 के साथ साथ, अश्लीलता के मुद्दे पर, या किसी पठान सामग्री में जैसे विज्ञापन में अनुचित रूप से महिला के प्रदर्शन पर लागू होता है.
- आई आर डब्ल्यू ए का सेक्शन 7 खासतौर पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन के सन्दर्भ में उपयोगी है. उदाहरण के लिए, जहाँ महिलाओं को कार्यस्थल पर आपत्तिजनक पोर्नोग्राफिक सामग्रियों में और सन्देश में इस्तेमाल किया जाता है.
- इसके आलावा, यदि यह साबित हो जाए कि इस तरह की पॉर्न सामग्री सुपरवाइजर या डाइरेक्टर की अनुमति या उनकी लापरवाही की वजह से तैयार हुई है तो उन्हें क़ानूनी सज़ा हो सकती है.
- इस एक्ट के तहत दो साल तक सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकता है.
स्टाकिंग (पीछा करना) के लिए कानून
स्टाकिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले भारतीय कानूनों के बारे में जानना आवश्यक है. यहाँ अलग से स्टाकिंग के लिए कोई कानून नहीं है. स्टाकिंग के केस निम्नलिखित सेक्शनों के अंतर्गत आ सकते हैं. इंडियन पिनल कोड का सेक्शन 294: अश्लील गाने और हरकतें कोई भी जो किसी अन्य को परेशान करे:(a)किसी सार्वजनिक जगह पर अश्लील हरकत करे
(b) किसी सार्वजनिक जगह या उसके पास अश्लील गाने गए, उच्चारित करे या शब्द बोले.
इंडियन पिनल कोड का सेक्शन 354: किसी महिला का शील भंग करने के लिए उसपर अत्याचार करना या आपराधिक जोर जबरदस्ती करना.
किसी महिला का शील भंग करने के लिए उसपर अत्याचार और जबरदस्ती करना या वह ऐसा करेगा इसकी जानकारी होना. [कोग्निजीबल और जमानती]
इन्डियन पिनल कोड 509: शील भंग करने के लिए शब्द, हावभाव या हरकत करना
किसी महिला की शीलता को अश्लील भाषा, छींटाकशी, आवाज़ या हावभाव या कोई वस्तु दिखाकर भंग करना या उसकी प्राइवेसी का उलंघन करना. [कोग्निजीबल और जमानती]
इन्डियन पिनल कोड 503: क्रिमिनल घमकी
जो कोई भी किसी को उसे चोट पहुँचाने, उसके मान सम्मान को चोट पहुँचाने या संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की धमकी देता है, या फिर उस आदमी के पहचान वाली किसी को ऐसी ही धमकी देता है या किसी को गैर क़ानूनी काम करने की धमकी देता है तो यह सारी हरकतें क्रिमिनल धमकी कहलाती हैं.
सेक्शन 66, आईटी एक्ट,2000: कम्पूटर सिस्टम की हैकिंग करना
जो कोई भी किसी सरकारी या निजी कम्पूटर में दर्ज जानकारी को गलत मंशा से मिटाता या नुकसान पहुंचाता है, हैकिंग कहलाता है. सेक्शन 67, आईटी एक्ट, 2000: एलेक्ट्रॉनिक रूप में मौजूद अश्लील जानकारी को प्रदर्शित करना. जो कोई भी एलेक्ट्रॉनिक रूप में कोई भी सामग्री जो अश्लील हो या उत्तेजक हो जिसका पढ़ने,देखने,सुनने वाले पर गलत असर हो, उसको खराब करे, गुमराह करे तो ऐसी सामग्री प्रदर्शित करने वाले को कारावास की सज़ा हो सकती है जो पांच साल तक हो सकती है. इसके लिए जुर्माना एक लाख रुपया हो सकता है और यदि अपराध दोबारा साबित हो जाए तो सज़ा दस साल और जुर्माना दो लाख रूपये तक हो सकता है. सेक्शन 66, आईटी एक्ट,2000- सेक्शन 66 में शामिल है, साईबर क्राइम और साईबर स्टाकिंग जैसे आपके ईमेल आईडी, पासवर्ड, ऑनलाईन बैंक एकाउंट, प्रोफाइल आदि की जानकारी को चुराना (हैक करना).
- मुंबई के साईबर सेल के मुताबिक, हैकिंग का मतलब है बिना मालिक या इस्तेमाल करने वाले की जानकारी और इजाज़त के बिना कम्पूटर सिस्टम में गैर क़ानूनी रूप से हस्तक्षेप करना. हैकिंग से स्टाकर को किसी के व्यक्तिगत जानकारी के बारे में बड़े पैमाने पर जानकारी मिल जाती है, जो वह उस महिला को डराने धमकाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है. आपके व्यक्तिगत जानकारी को पॉर्न वेबसाईट पर या डेटिंग सर्विस देने वाली साईट पर देना साईबर स्टाकर के आम अपराध हैं.
- स्टाकर आपकी ऑनलाईन पहचान को लेकर अन्य लोगों को भी परेशान कर सकता है.
- इसकी सज़ा पांच साल तक और जुर्माना 5 लाख रुपये तक हो सकता है.
- यदि आप इस अपराध का शिकार होती हैं तो आपको जरुरी डोक्यूमेंट जैसे ईमेल, बैंक ट्रांजक्शन का विवरण आदि रखना चाहिए. ईमेल आईडी या ऑनलाइन प्रोफाइल जो हैक हुआ है उसे ना मिटाएं, जैसा कि यह महत्वपूर्ण सबूत होता है.
सेक्शन 67, आईटी एक्ट, 2000
- सेक्शन 67 ऑनलाईन पोर्नोग्राफिक और अन्य अश्लील सामग्रियों से सम्बंधित साईबर स्टाकिंग के मामलों को शामिल करता है. ऑनलाइन पर ऐसी कोई भी सामग्री जो कि अश्लील हो उसे कोई प्रकाशित करता है तो उसे इस सेक्शन के अंतर्गत सज़ा हो सकती है.
- इसकी सज़ा 5 साल और जुर्माना 5 लाख रुपया हो सकता है.
- हो सकता है कि स्टाकर (पीछा करने वाला) आपके फोटोग्राफ का गलत इस्तेमाल कर उसे पॉर्न वेबसाइट पर प्रकाशित कर दे.
- सबूत के लिए अच्छा रहेगा कि आप इन वेब पेजों की फोटो खिंच कर रखें.
पुलिस के पास जाना
क्रिमिनल तरीका
जब आप क्रिमिनल केस फ़ाइल करने का निर्णय लेती हैं, तो यह ज़रुरी है कि आप पुलिस के पास जाने के पहले अपनी तैयारी कर लें.
- क्रिमिनल प्रोसिजर की शुरुआत एफ आई आर दर्ज कराने से होती है. यह एफ आई आर ही है जिसे पीड़ित क़ानूनी न्याय के लिए अपने अहम सबूत के रूप में देती है. एफ आई आर दर्ज कराने के पहले यह भी जानना जरुरी है कि कोग्निजीबल और नॉन-कोग्निनिबल अपराध के बीच क्या फर्क है. यौन उत्पीडन एक कोग्निजीबल अपराध है.
- एक बार जब एफ आई आर दर्ज हो जाता है, तब एक जांच अधिकारी को मामले के तहकीकात के लिए अपोइंट किया जाता है. इस जांच के आधार पर, पुलिस यह तय करती है कि आरोपी को गिरफ्तार किया जाए या नहीं. जांच के पूरा होने के बाद, पुलिस को चार्ज शीट तैयार करनी होती है जिसे मजिस्ट्रेट के पास जमा दिया जाता है.
- इसके बाद केस को कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है, इसके बाद या तो आरोपी को कारावास (कोग्निजीबल अपराध) भेजा जाता है या तो अपराध (नॉन-कोग्निजीबल) की आगे तहकीकात के लिए पुलिस इजाजत लेती है.
- कोर्ट के द्वारा आरोप को फ्रेम किया जाता है, जहाँ आरोपी को इस बारे में बताया जाता है और अपना पक्ष लेने के लिए कहा जाता है (कि वो अपराधी है या नहीं)
- दोनों पक्षों के गवाह और सबूत की फिर से जांच होती है
- दोनों पक्षों की तरफ से बहस सामने रखे जाते हैं
- अंत में फैसला सुनाया जाता है जिसके आधार पर आरोपी को या तो सज़ा होती है या रिहाई मिलती है.
पुलिस द्वारा तुरंत की कार्यवाई
यदि आप किसी ऐसी परिस्थिति में फंस गए हों जहाँ आपको तुरंत पुलिस के मदद की जरुरत हो, तब 100 नंबर पर फोन करने से ना झिझकें. इस बारे में और पढ़ें......... जब तक लोकल पुलिस आपकी सहायता को नहीं पहुँचती तब तक पुलिस कंट्रोल से आपको सहयोग मिल सकता है. यदि आप दिल्ली या मुंबई में हैं, तो महिलाओं के लिए हेल्पलाईन नंबर 1091 या 103 का इस्तेमाल कर सकते हैं. कुछ केसों में उत्पीडक भाग निकलने की कोशिश कर सकता है. इस तरह के केसों में, जब तक पुलिस नहीं आ जाती आप अपने आसपास के लोगों की सहायता ले सकते हैं कि वे अपराधी को पकडवाने में आपकी मदद करें. यह सेक्शन 43 क्रिमिनल प्रोसिजर कोड के अंतर्गत संभव है जो नागरिकों को ऐसी गिरफ़्तारी में मदद के लिए प्रोत्साहित करता है.एफ आई आर दर्ज करना
यौन उत्पीडन बंद करने के लिए इसकी पहचान करना जरुरी है. यहाँ हमेशा ऐसे लोग होंगें जो हमेशा कहेंगें कि इसका कोई मतलब नहीं है और आप कुछ ज्यादा ही उतेजित हो रही हैं. कुछ के लिए हो सकता है कि यह ‘टाइम-पास’ हो, लेकिन एफ आई आर दर्ज करवा कर आप उन्हें बताती हैं कि यह एक अपराध है.
एफ आई आर दर्ज कराने के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए........
- एफ आई आर हमेशा पुलिस स्टेशन में ही दर्ज की जाती है. हालांकि, यह जरुरी नहीं कि पीड़िता खुद ही दर्ज कराये. यह गवाह या उस पुलिस अधिकारी द्वारा भी दर्ज किया जा सकता है जिनके सामने अपराध हुआ हो.
- एफ आई आर दर्ज कराने में बहुत देर नहीं करनी चाहिए. देरी होने से अनावश्यक क़ानूनी प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है.
- एफ आई आर में यौन उत्पीडन होने का समय, तारीख सारा विवरण होना चाहिए. आरोपी की पहचान और यदि किसी ने उसकी मदद की हो तो उसके बारे में विवरण देना चाहिए. यदि उत्पीडक कोई अज्नाबी था, तब जितना याद हो उसके बारे में जानकारी देनी चाहिए.
- आप घटना के बारे में जितनी सही जानकारी दे सकते हैं उतनी दें. उदाहरण के लिए, आपको उत्पीडक ने घूर, पकड़ा और ये सब कैसे और कब हुआ.
- यदि आपकी सुरक्षा को उत्पीडक से किसी भी तरह का खतरा हो, उसे एफ आई आर में बताएं.
- जहाँ यौन उत्पीडन हुआ हो उसी इलाके में एफ आई आर दर्ज होनी चाहिए. इसलिए यदि आपके साथ आपके घर या उत्पीडक के घर में यौन उत्पीडन हुआ हो, तो आप उसी इलाके के पुलिस स्टेशन में केस दर्ज करना चाहिए.
- साइन करने के पहले जो एफ आई आर लिखा है उसे अच्छी तरह से पढ़ लें.
- पुलिस स्टेशन में ड्यूटी ऑफिसर से एफ आई आर में स्टाम्प और साइन लेना चाहिए. रिपोर्ट का सीरियल नंबर नोट कर लें.
- आपको मुफ्त में एफ आई आर की एक कॉपी मिलनी चाहिए.
- जब आप एफ आई आर फ़ाइल करती हैं तो याद रखें कि आप वही सच्चाइयाँ रिपोर्ट में दर्ज करती हैं जो आप जानती हैं. इसे साबित करने की जिम्मेदारी आपकी नहीं हैं.
